Re: छुआ आसमान : डॉ. अब्दुल कलाम
हमारे एक रिश्तेदार अहमद जलालुद्दीन ने नाव बनाते वक्त पिताजी की काफी मदद की थी। बाद में, उन्होंने मेरी बहन जोहरा से निकाह कर लिया। नाव बनाने और उसके समुद्र में चलने के दौरान ज्यादातर समय साथ-साथ रहने से मैं और जलालुद्दीन उम्र के बड़े फासले के बावजूद अच्छे दोस्त बन गए थे। वे मुझसे पंद्रह साल बड़े थे और मुझे आजाद कहते थे। हर शाम हम दोनों साथ-साथ दूर घूमने निकल जाते थे। आमतौर पर हम आध्यात्मिक मुद्दों पर बात करते थे। इस विषय में संभवत: रामेश्वरम के महौल ने हमारी रुचि बढ़ाई थी, जहां रोजाना असंख्य तीर्थ-यात्री इबादत करने आते हैं। हमारी पहली नजर अक्सर विशाल, भव्य शिव मंदिर पर पड़ती थी। हम उतनी श्रद्धा से ही मंदिर की परिक्रमा करते थे, जितनी कि दूर-दराज जगहों से आने वाले यात्री करते थे।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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