Re: हमारी मित्र है ‘मृत्यु’
एक अवसर पर लोकमान्य तिलक ने कहा था कि खच्चर अलबत्ता अपनी कुल-परम्परा की शेखी बघारता है। घोड़े को उसकी जरूरत नहीं होती। अगर हम अपने पूर्वजों की प्रतिष्ठा के अनुरूप उदार आचरण करेंगे, तो पूर्वजों की कीर्ति के भरोसे जीने की नौबत ही नहीं आएगी।... संसार कहता है कि रवींद्रनाथ साहित्य सम्राट थे, लेकिन उन्होंने साहित्य की उपासना केवल साहित्य-विलास के लिए नहीं की। महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर जैसे धर्मपरायण पिता से उन्हें जो आध्यात्मिक विरासत मिली थी, उसी का साहित्य में विनियोग करके मनुष्य-जाति की सेवा करने की धुन उन पर सवार रहती थी। हृदय के विकास के बिना, उसमें मार्दव और आर्द्रता लाए बिना, मनुष्यता नहीं आएगी, यह समझकर ही उन्होंने साहित्य, संगीत, चित्रकला, नृत्यकला आदि ललितकलाओं की उपासना का उपक्रम किया था। कवि के नाते रवींद्रनाथ ठाकुर की ख्याति का आरम्भ उनके 13वें वर्ष से ही हुआ। उनकी यह प्रतिभा उनके 80वें वर्ष तक लगातार बढ़ती ही गई।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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