Re: छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानी
सैनिक वर्चस्व का आरंभ
शिवाजी महाराज ने अपने संरक्षक कोणदेव की सलाह पर बीजापुर के सुल्तान की सेवा करना अस्वीकार कर दिया। उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। ऐसे साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले उन्होंने मावलों को बीजापुर के ख़िलाफ संगठित करने लगे। मावल प्रदेश पश्चिम घाट से जुड़ा है और कोई १५० किलोमीटर लम्बा और ३0 किमी चौड़ा था। वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते थे। इस प्रदेश में मराठा और सभि जाति के लोग रहते थे। शिवाजी महाराज इन सभी जाति के लोगो को लेकर मावलों (मावळा) नाम देकर सभी को संघटित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया। मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जितना शेरशाह सूरी के लिए अफ़गानों का साथ।
उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुगलों के आक्रमण से परेशान था । बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था । जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया । शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति अपनाई । सबसे पहला दुर्ग था तोरण का दुर्ग ।
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