श्लोक (5)
प्रजापतिहिं प्रजाः सृष्टवा तासां स्थितिनिबंधनं त्रिवर्गस्य साधनमध्यायानां शतसहस्त्रेणाग्रे प्रोवाच।।
अर्थ- प्रजापति ने प्रजा को रचकर और उनके रोजाना कार्य धर्म, अर्थ और काम के साधन भूतशास्त्र का सबसे पहले 1 लाख श्लोकों में प्रवचन किया है।
भारतीय सिद्धान्त के मुताबिक जब तक द्वंद (अंदरूनी लड़ाई) है तब तक दुख भी रहेगा। इसलिए दुख को निकालकर फैंक देना चाहिए। भगवान शिव के समान दूसरा कोई नहीं है। इन तीनों विषयों की ज्वाला यहां पर नहीं है। मनुष्य का गम्य स्थान भारतीय दार्शनिकों नें इसे ही कहा है। भारतीय वागंमय का निर्माण भी इसी को प्राप्त करने के लिए ही हुआ है। ब्रह्मविद्या के अंतर्गत यह सारी विद्याएं मौजूद है।
सारे देवताओं से पहले पूरे संसारे की रचना करने वाले प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा ने अपने सबसे बड़े पुत्र अथर्व के लिए ब्रह्मविद्या का निर्माण किया जो कि हर विद्या में सबसे बढ़कर है। इससे इस बात का साफ पता चल जाता है कि ब्रह्मविद्या के अंतर्गत कामशास्त्र को भी महत्व दिया गया है।
आचार्य वात्सायायन के मतानुसार बह्मा ने प्रजा को उनके जीवन को नियमित बनाने के लिए कामसूत्र के बारे में बताया था- जो कि सुसंगत और परंपरागत माना गया है। बह्मा ने कामसूत्र को काम, अर्थ और धर्म का साधन मानकर इसकी रचना की है क्योंकि इन तीनों का आखिरी पड़ाव मोक्ष ही है और मनुष्य के जीवन का मकसद भी मोक्ष को प्राप्त करना ही है। इसलिए जब तक मोक्ष की असली परिभाषा को बहुत अच्छी तरह से समझा नहीं जाएगा तब तक इसको प्राप्त करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है।