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Old 07-12-2012, 04:24 PM   #15
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

श्लोक (10)
तदेव तु पुनरध्यर्धेनाध्यायशतेन साधारण-साम्प्रयोगिककन्यासम्प्रयुक्तकभार्याधिकारिक-पारदारिक-वैशिकऔपनिषदिकैः सप्तभिरधिकरणैर्बाभ्रव्यः पाञ्ञालञ्ञक्षेप।।
इसके बाद पाञ्ञाल देश के बभ्रु के बेटे ने श्वेतकेतु के 500 अध्यायों वाले कामसूत्र को 100 अध्यायों में साधारण साम्प्रयोगिक, कन्या सम्प्रयुक्त, भार्याधिकारिक, पारदारिक, वैशिक और औपनिषदिक नाम के 7 अधिकरणों में जोड़कर पेश किया।
मानवजीवनकेमकसदकोनिर्धारितकरनेकेलिएऔरउसेकाबूकरनेकेलिएब्रह्मानेएकसंविधानबनायाजिसकेअंदरलगभग 1 लाखअध्यायथे।इनअध्य़ाय़ोंमेंजीवनकेहरपहलूकाविशद्, संयमनऔरनिरूपणकाउल्लेखथा।मनुनेउसविशालग्रंथको
मथकर आचारशास्त्र का एक अलग संस्करण पेश किया जो मनुस्मृति या धर्मशास्त्र के नाम से प्रचलित है।
मनु ने जो मनुस्मृति रची थी वह असली रूप में उपलब्ध नहीं है। प्रचलित स्मृति उसी स्मृति का संक्षिप्त विवरण है जिसे मनु ने पेश किया था। आचार्य बृहस्पति ने भी उसी विशाल ग्रंथ के द्वारा अर्थशास्त्र विषयक भाग अलग करके बार्हस्पत्यम अर्थशास्त्र की रचना की। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में बृहस्पति के अर्थशास्त्र के अंतर्गत ही देखने को मिलते है।
ब्रह्मा से लेकर बाभ्रव्य तक की कामशास्त्र की रचना पर विहंगम दृष्टि डालने से ग्रंथ रचना पद्धति की परंपरा और उसके इतिवृत का भी बोध होता है। कामशास्त्र को ब्रह्मा ने नहीं रचा उन्होने तो सिर्फ इसके बारे में बताया है। इससे यह बात साबित हो जाती है कि रचनाकाल से ही कामसूत्र का प्रवचन काल शुरू होता है।
कामसूत्र के छठे और सातवें अध्याय से पता चल जाता है कि ब्रह्मा के प्रवचन शास्त्र से पहले मनु ने मानवधर्म को अलग किया, उसके बाद बृहस्पति ने अर्थशास्त्र को अलग किया, इसके बाद फिर नन्दी ने इसको अलग किया।
इसके बाद अर्थशास्त्र और मनुस्मृति की रचना हुई क्योंकि बृहस्पति और मनु ने कामसूत्र की रचना नहीं की बल्कि इसे सिर्फ अलग किया है। इसके बाद ही श्वेतकेतु और नन्दी ने इसके 1000 अध्यायों को छोटा करके 500 अध्यायों का बना दिया। इस बात से साफ जाहिर हो जाता है कि ब्रह्मा द्वारा रचित शास्त्र में से नन्दी ने कामविषयक सूत्रों को एक सहस्त्र अध्यायों में बांट दिया। उसने अपनी ओर से इसमें कुछ भी बदलाव नहीं किया क्योंकि वह प्रवचन काल था।
उसने जो कुछ भी पढ़ा या सुना था वह ऐसे ही शिष्यों और जानने वालों को बताया। लेकिन श्वेतकेतु के काल में संक्षिप्तीकरण का प्रचलन हो चुका था और बाभ्रव्य के काल में तो ग्रंथ-प्रणयन और संपादन की एक मजबूत प्रणाली प्रचलित हो गयी। पांचाल द्वारा तैयार किए गए 7 अधिकरण इस प्रकार है-
साधारण अधिकरण
साम्प्रयोगिक अधिकरण
कन्या सम्प्रयुक्तक अधिकरण
भार्याधिकारिक अधिकरण
पारदरिक अधिकरण
वैशिक अधिकरण
औपनिषदिक अधिकरण

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