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Old 08-12-2012, 03:41 PM   #22
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

असफ़लता की निराशा में भी अवसरों पर नजर रखें

सुबह ऑफ़िस में कदम रखते ही रजनीश को बॉस की डांट का सामना करना पड़ा. उसके चेहरे को देख कर साफ़ लग रहा था कि आज डांट ज्यादा पड़ी है. बगल में आकर बैठा तो मैंने पूछ लिया कि आज डांट ज्यादा पड़ी है क्या? उसने कहा- आते ही बॉस ने लेक्चर पिला दिया.

अब तो सारा दिन ऐसे ही जाना है. आज तो कुछ भी अच्छा नहीं होनेवाला है. उसने सुबह ही यह तय कर लिया कि आज उसका दिन खराब रहनेवाला है. लंच वह लेकर आया था, लेकिन लंच किया नहीं. कलीग्स उससे बात भी करना चाह रहे थे, तो उसने सीधे मुंह जवाब नहीं दिया. काम की रफ्तार भी आज अन्य दिनों की अपेक्षा कम थी. दिन वैसा ही बीता, जैसा उसने सोचा था.

अगले दिन जब ऑफ़िस आया, तो बिल्कुल सामान्य था. हंसी-मजाक भी हुआ और काम भी. मैंने उसे कुछ सामान्य देखा, तो कहा, रजनीश कल सुबह तुम्हारा मूड खराब हुआ, लेकिन उसके बाद का पूरा समय तुमने खुद से खराब किया.

अगर तुम चाहते, तो उस समय को भी अच्छा बना सकते थे, आज की तरह. एक परेशानी आने पर यह जरूरी नहीं कि हमें आगे परेशान ही रहना होगा. हमें हमेंशा सामान्य रहने की कोशिश करनी चाहिए.

एक मछुआरा था. एक दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डाल कर वह मछलियां पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में न फ़ंसी. जैसे-जैसे सूरज डूबने लगा, उसकी निराशा गहरी होती गयी.

भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला, पर इस बार भी वह असफ़ल रहा, पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी. मछुआरे ने पोटली निकाली और टटोला तो झुंझला गया और बोला, यह तो पत्थर है! फ़िर मन मार कर वह नाव में चढ़ा.

बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपनी नाव को आगे बढ़ाता जा रहा था और मन में आगे की योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था. सोच रहा था, कल दूसरे किनारे पर जाल डालूंगा. सबसे छिप कर. उधर कोई नही जाता. वहां बहुत सारी मछलियां पकड़ी जा सकती हैं.

मन चंचल था तो फ़िर हाथ कैसे स्थिर रहता? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फ़ेंकता जा रहा था. पोटली खाली हो गयी. जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उसपर गयी और वह स्तब्ध रह गया. उसे अपनी आंखों पर यकीन नही हो रहा था. यह क्या! यह तो नीलम था.

मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था. नदी के बीचोबीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ़ अब अपने को कोस रहा था. इसलिए कहा गया है कि एक असफ़लता की निराशा में दूसरे अवसर की अनदेखी करना अपने ही हाथों एक ऐसा नुकसान कर लेना है, जिसके लिए आप अकेले ही जिम्मेवार होते हैं.

- बात पते की
* हर हाल में खुद को सामान्य रखने की कोशिश करें.
* एक बार असफ़ल होने का मतलब यह नहीं कि अब असफ़ल ही होंगे.
* निराशा में अवसरों की अनदेखी करना अपने ही हाथों एक ऐसा नुकसान कर लेना है, जिसके लिए आप अकेले जिम्मेवार होते हैं.
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