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Originally Posted by rajnish manga
मन की कमाई से ये दुनियादारी है.
नर तन तो पा लिया मन देनदारी है.
आकुल है क्या करे भूखा है नेह का,
छोड़ो भी मांगने दो मन तो भिखारी है.
नफरत भी प्यार भी आंसू भी लार भी,
जो चाहे लीजिए जी, मन पंसारी है.
बेड़ियाँ उतार कर अथाह में चले तो हैं,
पैरों में है गति, मन आज भारी है.
कहीं कुछ लुभाया, तो कहीं भरमाया,
उठाईगीर चौक में मन ब्यौपारी है.
जिद्दी है सुख के उपादान चाहता है,
माया के चक्कर में मन अविचारी है.
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आम जनता के मन का शानदार वर्णन
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