Re: उर्दू की मज़ाहिया शायरी
हास्य-रस से भरपूर इकबाल की कुछ रचनाएं ............
शैख़ साहब भी तो परदे के कोई हामी न रहे
मुफ्त में कालिज के लड़के उनसे बद्जन हो गए
वाज में फरमा दिया कल आपने यह साफ़ साफ़
परदा आखिर किससे हो जब मर्द ही जन हो गए
वाज = धर्मोपदेश
जन = स्त्री
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