Re: उर्दू की मज़ाहिया शायरी
मस्जिद तो बना दी शब् भर में, ईमां की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है, बरसों में नमाजी बन न सका
तर आँखें तो हो जाती हैं, पर क्या लज्ज़त इस रोने में
जब खूने जिगर की आमेजिश से, अश्क पियाजी बन न सका
'इकबाल' बड़ा उपदेशक है, मन बातों में मोह लेता है
गुफ्तार का यह गाजी तो बना, किरदार का गाजी बन न सका
शब् = रात
ईमां की हरारत = जिसके मन में धर्म का उग्र प्रेम था
लज्जत = आनंद
खूने जिगर = हृदय का खून
आमेजिश = मिश्रण
अश्क = आंसू
पियाजी = गुलाबी
गुफ्तार = बात
गाजी = धर्मयोद्धा
किरदार = चरित्र
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