Re: ! आशिकाना शायरी !
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Originally Posted by kumar anil
नीँद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी , पाँव जब तलक उठे कि जिन्दगी फिसल गयी , और हम खड़े - खड़े वक्त से पिटे - पिटे , उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे ।
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वाह
क्या बात कही
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है
जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है
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