मेरी रचनाये-4 दीपक खत्री 'रौनक'
दिखावा भर है वरना कहाँ अपना मानते है लोग
जब सच कहो तो कितना बुरा मानते हैं लोग
क्यों बे वजा सुनाये आलम अपने दिल का यहाँ
यहाँ गैरो के आंसुओ को भी झूठा मानते है लोग
सुना सुनाया भर है कि खुदा दिलों मे बसता है
देखा तो ये कि दौलत को खुदा मानते है लोग
चुस्त है बहुत लोगों के जज्बात यहाँ आजकल
क्या बताये अब इन्हें नहीं कहा मानते है लोग
शामिल तो हो जाते है सब जनाजे की भीड़ मे
फब्तियों मे कहाँ मुर्दे को मरा मानते है लोग
चाह बेइंतिहा हो गई है बुलंदियों को पाने की 'रौनक'
रास्ता हो गर बद से बुरा तो भी भला मानते है लोग
दीपक खत्री 'रौनक
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