Re: बच्चे मन के सच्चे
बच्चो को एखाकर नीरज गोस्वामी की एक कविता यद् आ गई पेश है
है प्यारी सी अपनी मिष्टी
जिसमें सारी अपनी सृष्टि
सपनो को साकार किया है
हमसब को उपहार दिया है
बिखरे बिखरे से जीवन को
इक सुंदर आकार दिया है
सारे घर की शान है मिष्टी
घर वालों की जान है मिष्टी
ठुमक ठुमक कर नाच दिखाए
तितली की जैसे मंडराए
छोटे छोटे से पावों से
लम्बी लम्बी दौड़ लगाये
लगती तो नादान है मिष्टी
पर बेहद शैतान है मिष्टी
बड़ी बड़ी हैं आँखें चंचल
जिनमें हरपल देखूं हलचल
मीठे मीठे गीत सुनाती
जैसे घर में गाती कोयल
सब का दिल बहलाए मिष्टी
ये सबकी कहलाये मिष्टी
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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