तेरे इश्क ने बक्शी है ये सौगात मुसलसल
तेरा ज़िक्र हमेशा ! तेरी बात मुसलसल !
एक मुद्दत हुई तेरे कूचे से निकले हुए
रहती है फिर भी तुझसे मुलाकात मुसलसल !
दिल लगी, दिल की लगी बन जाती है कमबख्त
जब तसव्वुर में गुज़रती है रात मुसलसल
जब से देखा है ज़ुल्फ़-ऐ-परेशां का आलम
उलझे हुए रहते हैं मेरे दिन रात मुसलसल
मैं मुहब्बत में उस मुकाम पे पहुच चूका हूँ ऐ जाना
मेरी ज़ात में रहती है तेरी ज़ात मुसलसल !!!