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Originally Posted by rajnish manga
और दुनियाँ में कुछ कमी न हुयी.
दिन हुआ दिन में रौशनी न हुयी.
सफर-ए-मंजिल ने ऐसा परीशां किया
पास आ कर भी हमको खुशी न हुयी.
तेरी नज़रों का हो गिला क्यों कर
दुश्मनी दिल से दुश्मनी न हुयी.
पास रह कर भी इतनी दूर हैं दिल
गोया ये इक्कीसवीं सदी न हुयी.
कहाँ पे जायेंगे काफ़िले ज़माने के,
इसकी तस्दीक भी सही सही न हुयी.
आखरी रोज़ हमपे ये राज़ फ़ाश हुआ,
ज़िंदगी ढंग की ज़िंदगी न हुयी.
न समझ आये यही बेहतर है ‘शरर’
हमसे क्योंकर भला नहीं न हुयी.
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]न समझ आये यही बेहतर है ‘शरर’
हमसे क्योंकर भला नहीं न हुयी.