Ahmad Faraz
(1931-2008)
बरसों के बाद देखा इक शख्स दिलरुबा सा
अब जहाँ में नहीं है पर नाम था भला सा
अल्फाज थे के जुगनू आवाज के सफ़र में
बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा
ख्वाबों में ख्वाब उस के यादों में यद् उस की
नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
तेवर थे बेरुखी के अंदाज दोस्ती के
वो अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा