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Old 05-01-2013, 02:47 PM   #27
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

आलोचना करने और सुनने का भी एक तरीका होता है

अगर आपके वरिष्ठ अधिकारी आपसे यह कहते हैं, कि तुमने बहुत अच्छी रिपोर्ट बनायी है. बहुत मेहनत की है. इसमें अगर डेटा अपडेट रहता तो यह रिपोर्ट और भी अच्छी हो जाती.. तो ऐसी आलोचना सकारात्मक श्रेणी में आती है, क्योंकि यहां पर असली मुद्दे की बात की गयी है और आपको सौम्यतापूर्वक बताया गया है कि आप रिपोर्ट को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकते थे.

दूसरी तरफ़, नकारात्मक आलोचना का उद्देश्य किसी व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना होता है. इसमें मुद्दे की बात गायब होती है. अगर वरिष्ठ अधिकारी अपने कर्मचारी से कहे, कि तुमने ऐसी मूर्खतापूर्ण गलती कैसे की? पता नहीं, कैसे-कैसे लोग नौकरी पा जाते हैं..तो इस आलोचना में कर्मचारी के सुधार की भावना की जगह वरिष्ठ अधिकारी का क्रोध ही दिखाई पड़ता है. ऐसी आलोचना से कर्मचारी सुधरेगा नहीं, हताश होगा.

दूसरी बात, अगर आपकी आलोचना होती है, तो आप उसे किस रूप में लेते हैं. यह परोक्ष रूप में आपकी छवि का निर्धारण करता है. विवाह के बाद ससुराल गयी अमृता ने जब पहली बार खीर बनायी, तो जेठानी ने मुंह बनाते हुए कहा, यह भी कोई खीर है? इससे अच्छा स्वाद तो दूध में चावल को मिला देने भर से आ जाता है. इस आलोचना पर अमृता दो तरह की प्रतिक्रियाएं दे सकती थी. पहली यह कि वह जेठानी को पलट कर करारा जवाब देती और हमेशा के लिए उसकी दुश्मन बन जाती, लेकिन समझदार अमृता ने मस्तिष्क को शांत रखते हुए जवाब दिया, दीदी, यह मेरी पहली कोशिश थी. आपके साथ रह कर जल्दी ही सब कुछ सीख जाऊंगी.

सिखायेंगी न!अक्सर हममें से अधिसंख्य अमृता की तरह सहज बुद्धि और शांत स्वभाव के नहीं होते और किसी के द्वारा आलोचना किये जाने पर पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाये. क्या यह सही है? दरअसल, आलोचना किए जाने के बाद हम सोचते हैं कि इसका अर्थ यह है कि आलोचक हमें बुरा, मूर्ख और अयोग्य मानता है. इसीलिए हम आलोचना के मूलभाव को समझने और इसके अनुसार सुधार की कोशिश नहीं करते हैं और तुरंत आवेश में आ जाते हैं. हो सकता है कि आपकी गलती बिल्कुल नहीं हो और सामनेवाला जान-बूझकर ऐसा कर रहा हो.

अगर ऐसा है, तो आलोचना को लेकर कुछ भी सोचने या करने की कोई जरूरत ही नहीं है. हालांकि इसका यह मतलब भी नहीं कि समझ के दूसरे दरवाजे बंद कर लें. गलती करना मनुष्य का स्वभाव है और आप उससे अलग नहीं हैं. जब भी कोई आपकी कार्यप्रणाली या व्यवस्था या व्यक्तित्व के किसी भी पक्ष को लेकर कुछ कहे तो उसे सुनें जरूर, फ़िर आत्मनिरीक्षण करें. आलोचना सही है या गलत इसका जवाब आपको खुद ही मिल जायेगा. सही है तो सुधारें और गलत है, तो इग्नोर करें, लेकिन त्वरित प्रतिक्रिया देने से हमेशा बचें.

-बात पते की-
-आलोचना सुनने के बाद आत्मनिरीक्षण करें. आलोचना सही है, तो सुधारें खुद को और गलत है तो इग्नोर करें.
-नकारात्मक आलोचना का उद्देश्य स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना है.
-सकारात्मक आलोचना कर्मचारियों को बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है.

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