Re: मेरी रचनाएँ-6 - दीपक खत्री 'रौनक'
रोक लो
=====
रोक लो
कोई इन
अँधेरे की ओर
बढ़ते
कदमो को
इन बुराई
से भरे
इरादों को
इन आँखों
से जाती
हया को
क्योंकि
ये मांग है
वक्त की
ना रोकोगे
अगर
तो फिर
बचेगा
सिर्फ
पश्चाताप
अपराधबोध
ग्लानि
बचालो
खुद को
अहम् को
समाज को
विश्वास को
अपने
अस्तित्व को
क्या सोचने
लगे
बढाओ
जरा एक
कदम
और
अपनी
पूरी जान
लगाकर
रोक लो
दीपक खत्री 'रौनक'
|