Re: शिक्षा और व्यवसाय {Education & career }
शिक्षा ऎसी हो, जो सुसंस्कार दे
दिल्ली में गैंग रेप की घटना से यह सिद्ध हुआ है कि जितना नीचे मनुष्य गिर सकता है, उतना नीचे पशु भी नहीं गिर सकता। इस पर आक्रोश और दु:ख स्वाभाविक है। इन दिनों कानून और व्यवस्था संबंधी बहुत से सुझाव दिए जा रहे हैं। उन पर गंभीरता से विचार करके बिना विलंब किए क्रियान्वित करना प्रशासन और सरकार का प्राथमिक दायित्व है। आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में सरकार आधे मन से काम नहीं करेगी और ऎसे उपाय बरतेगी कि उसका परिणाम व्यवहार में दिखाई दे सके।
गैंग रेप की घटना हो या आतंकवाद की अथवा भ्रष्टाचार की, इन सबके समाधान का कानून और प्रशासन के अतिरिक्त एक अन्य पक्ष भी है। वह पक्ष सांस्कृतिक है। मनुष्य को सुसंस्कृत बनाने का कार्य शिक्षा का है। विचार करना चाहिए कि क्या हमारी शिक्षा यह कार्य पूरी ईमानदारी से कर रही है या कि वह मनुष्य को केवल पैसा कमाने वाली मशीन बनाने भर का ही कार्य कर रही है। गैंग रेप की घटना कानून और व्यवस्था की कमी के कारण तो घटित होती ही है, किंतु इसके अतिरिक्त उसका एक कारण यह भी है कि हमारी शिक्षा में मनुष्य को सुसंस्कृत बनाने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया जा रहा।
इस दिशा में पहली बाधा हमारी संवैधानिक पंथ-निरपेक्षता प्रतीत होती है, किंतु वास्तव में ऎसा है नहीं। आचार्य विनोबा भावे ने, जिनकी पंथ-निरपेक्षता पर किसी को भी संदेह नहीं है, छोटी-छोटी पुस्तकों में ऎसी सामग्री जुटा दी है, जो विभिन्न संप्रदायों और मजहबों से सर्वसम्मत सार-भूत मूल्यों को समाहित किए हैं। शताब्दियों से मानव-मूल्यों की शिक्षा उपनिषद्-गीता, बाइबिल, कुरान जैसे धर्मग्रंथों के माध्यम से दी जाती रही है।
दुर्भाग्य से ये धर्मग्रंथ संप्रदायों के घेरों में घिर गए हैं और पंथ-निरपेक्षता में बाधक प्रतीत होते हैं। देश में ऎसे प्रबुद्ध चिंतक हैं, जो इन ग्रंथों के शाश्वत और सार्वभौम मूल्यों को रेखांकित करके ऎसी पाठ्यसामग्री उपलब्ध करा सकते हैं, जिसे पंथ-निरपेक्षता को सुरक्षित रखते हुए शिक्षा की मुख्य धारा में पाठ्क्रम के रूप में प्रस्तावित किया जा सकता है। यह कार्य करणीय है, क्योंकि पंथ-निरपेक्षता का अर्थ चरित्र-निरपेक्षता नहीं है। इस देश की परंपरा और मानसिकता नैतिकता को पवित्र धर्मग्रंथों से जोड़कर देखने की है।
फिर भी यदि पश्चिमी प्रणाली की धर्म-ग्रंथ-निरपेक्ष आचार मीमांसा भी हमारा सहयोग कर सके तो उससे भी परहेज नहीं करना चाहिए। नैतिकता का आधार अध्यात्म है। अध्यात्म के बिना नैतिकता बिना नींव का महल है। अध्यात्म का सूत्र योग है। पिछले कुछ दशकों में योग के अनेक आंदोलन चले हैं। वे भी दुर्भाग्य से व्यक्ति-केंद्रित हो गए। योग के प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर हम एक ऎसी पद्धति भी बना सकते हैं, जो व्यक्ति का रूपांतरण कर सके।
योग का प्रयोजन चित्त-वृत्ति का परिष्कार है। चित्त-वृत्ति परिष्कृत हुए बिना केवल कानूनी प्रावधान गैंग रेप जैसी दुर्घटनाओं को एक सीमा तक ही रोक सकते हंै। धर्मस्थान पवित्रता के केंद्र माने जाते हैं, किंतु अब उनकी पवित्रता पर संदेह होने लगा है। वे स्वयं को महिमा-मंडित करने वाले बनते जा रहे हैं। धर्मगुरू इस संबंध में गंभीरता से विचार करें। धर्मगुरू देखें कि उनके अनुयायी कुछ "कर्मकांड" करके ही संतुष्ट हो जाते हैं या उनके जीवन में पवित्रता का भी प्रवेश होता है। उन्हें भी इस दिशा में फलदायी कदम उठाने होंगे।
विशेषकर भारत में संसार के सभी प्रमुख धर्मो के प्रमुख केंद्र हैं। छोटे-छोटे गांव में भी एक न एक धर्म का स्थान है। इन केंद्रों के व्यवस्थापकों को सोचना होगा कि ये वृद्ध स्त्री-पुरूषों के समय बिताने का स्थान न रहकर संस्कार-निर्माण का कार्य करने का केंद्र बन सकें।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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