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Old 07-01-2013, 04:37 PM   #28
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

मन को आपने जीत लिया तो दुनिया जीत सकते हैं

अक्सर कई लोगों को इस बात का दुख होता है कि उनके साथ के लोग काफ़ी आगे बढ़ गये, लेकिन वे पीछे रह गये. साथ तैयारी की, समय भी एक-सा ही दिया, फ़िर क्या वजह रही कि कोई बहुत आगे निकल गया और कोई पीछे रह गया. असल में इन स्थितियों में जीत मन की होती है.

सफ़ल होनेवाला हर शख्स अचानक सफ़ल नहीं हो जाता, पहले मन से मान लेता है कि वह सफ़ल होगा. यह मानना ही उसे ताकत देता है, हौसला देता है. कल्पनाओं के धरातल पर देखा गया हर सपना पूरा होता है बशर्ते सबसे पहले आप इसके लिए तैयार हों. अगर आपने अपने टारगेट में किंतु..परंतु..जैसे शब्दों का यूज किया, तो समझ लें कि सफ़लता निश्चित नहीं है.

कुछ भी करने के पहले यह मान लें कि आपको करना है, कैसे भी करना है. विकल्प न रखें, जहां विकल्प होगा, वहां प्रयास पूरा नहीं हो सकता. कहते हैं न, मन के जीते जीत है, मन के हारे हार. इस कहावत को अपनी जिंदगी में पूरी तरह उतार लें.

एक दूध विक्रेता गांव से दूध ले जाकर शहर में बेचता था. एक दिन गांव के एक शरारती बच्चे ने दूध के दो डिब्बों में एक-एक मेढक डाल दिया. दूधवाला इन डिब्बों को लेकर शहर चल दिया. मेढक ने दूध के डिब्बे से बाहर निकलने की सोची. डिब्बे का भारी ढक्कन खोलना उसकी सामथ्र्य के बाहर था. डिब्बे में छेद कर बाहर निकलना भी असंभव था. थोड़ा-बहुत हाथ-पैर मार कर वह निराश हो गया. उसके मन में यह बात बैठ गयी कि अब वह नहीं बच सकता. परिणामस्वरूप शहर जाकर जब डिब्बा खोला गया, तो दूधवाले को उसमें एक मरा हुआ मेढक मिला.

दूसरे डिब्बेवाले मेढक ने भी बाहर निकलने की संभावना सोची. डिब्बे का ढक्कन खोलना या उसमें छेद करना संभव नहीं था. मेढक इधर से उधर तथा नीचे-ऊपर तेजी से तैरता रहा. उसने मन में सोचा- जब तक बच न जाऊं, तब तक तैरता रहूंगा. वह दूध में जोर-जोर से हाथ-पैर मार कर जी जान से संघर्ष करने लगा. थकने और सांस फ़ूलने पर भी वह नहीं रुका.

कुछ समय बाद अचानक उसने देखा कि दूध में से एक चिकना ठोस पदार्थ अलग हो कर तैर रहा है. बचने की आस देख उसने प्रयत्न और तेज कर दिये, तब मक्खन का एक गोला-सा बन गया. वह उस पर बैठ गया. शहर आने पर दूधवाले ने जैसे ही डिब्बे का ढक्कन खोला, मेढक उछल कर बाहर कूद कर भाग गया.

पहले और दूसरे दोनों मेढक के पास समान परिस्थितियां थीं, समान समय था, फ़िर भी पहला मेढक अपनी जान नहीं बचा सका, जबकि दूसरे मेढक ने हिम्मत नहीं हारी, उसने सोच लिया था कि सफ़लता मिले न मिले प्रयास नहीं छोड़ना है. हम सभी को अपनी जिंदगी में यह तय कर लेना होगा कि हमने जो टारगेट तय किया है, उस ओर हमें लगातार प्रयास जारी रखने चाहिए.

- बात पते की
* हमने जो टारगेट तय किया है, उस ओर हमें लगातार प्रयास जारी रखने चाहिए, यह मानते हुए कि सफ़लता मिलनी ही है.
* मन में सफ़लता को लेकर कोई असमंजस न रखें.
* जहां विकल्प होगा, वहां प्रयास पूरा नहीं हो सकता.
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