Re: रेप पीड़ितों को जल्द ‘इंसाफ’
आज सुर्खियों में आने के बाद भी ऐसी कई घटनाएं हैं जो मीडिया और लोगों की याद्दाश्त से गायब हो गई हैं. वो भी एक ऐसे देश में जहां हर 30 मिनट बाद नारी की आबरू तार–तार की जाती है. हमारे देश में पहले भी बलात्कार की कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जो मानवता को शर्मिंदा कर देने वाली हैं. ऐसी ही एक दर्दनाक घटना वर्ष 1973 में हुई थी. उस समय भी लोगों ने नाराजगी जताई थी अपने गुस्से का इजहार किया था लेकिन उस सब का कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि आज भी वो दरिंदा खुले आम घूम रहा है और वो लड़की आज भी सजा काट रही है उस गुनाह की जिसे उसने किया ही नहीं था.
पीड़िता और उसका परिवार आज भी उस जंग को लड़ तो रहा है लेकिन बिलकुल अकेले और एकांत में. 39 साल से चल रहे दर्दनाक संघर्ष की एक सच्ची कहानी है यह जो समाज की कड़वी हकीकत बयां करती है.
हर रोज की तरह उस दिन 27 नवम्बर 1973 को अरुणा शानबाग (जो मुंबई में नर्स का काम करती थी) अपने ड्यूटी पर गई थी. उसे क्या पता था कि वहीं काम करने वाले एक क्लीनर सोहनलाल भरता वाल्मीकि की निगाह उस पर है. उस दिन जब वो अकेले काम कर रही थी तब सोहनलाल ने अचानक अरुणा पर हमला कर दिया था और उसके साथ बेहद अप्राकृतिक ढंग से बलात्कार किया था लेकिन उसकी हैवानियत यहीं खत्म नहीं हुई. उसने सबूत मिटाने के लिए अरुणा को जान से मारने का भी प्लान बना रखा था.उसने अरुणा के गले में लोहे की चेन बांधी और गला घोटने की कोशिश की. जब उसे लगा कि वो मर चुकी है तो उसे छोड़ कर वो फरार हो गया. लेकिन दुर्भाग्यवश अरुणा मरी नहीं थी बल्कि बेहद प्रताड़ित किए जाने की वजह से वह कोमा में चली गई थी .
जांच के दौरान पुलिस को कुछ सुराग हाथ लगे और सोहनलाल को गिरफ्तार कर लिया गया. अरुणा पुलिस को ये भी नहीं बता सकी कि उसके साथ किस कदर दरिंदगी से एक घिनौने अपराध को अंजाम दिया गया था क्योंकि वो कोमा में जा चुकी थी. सोहनलाल पर लूटपाट और हत्या के प्रयास का केस चला और सात साल की छोटी सी सजा दी गई. लेकिन यहां ये कहानी खत्म नहीं होती है बल्कि यहां से शुरू होती है इस भयंकर अपराध की सबसे डरा देने वाली सच्चाई. इस वारदात को हुए 39 साल बीत चुके हैं. अरुणा आज भी जिन्दा है लेकिन, न तो बोल सकती है न सुन सकती न ही हिल सकती है. एक जिन्दा लाश की तरह पिछले 39 साल से वह अस्पताल में पड़ी हुई है.वह अपनी बेहद जरूरी क्रियाएं भी खुद नहीं कर सकती जबकि उसे इस भयानक अंजाम पर पहुंचाने वाला दरिंदा आज भी इसी समाज में आजाद घूम रहा है.
आज भी सोहनलाल अपना नाम बदल कर दिल्ली के एक अस्पताल में एक वार्ड बॉय का काम कर रहा है. दरिंदा बाहर घूम रहा है जबकि पीड़िता आज भी उस गुनाह की सजा भुगत रही है जो उसने किया ही नहीं था और हमें ये भी पता नहीं कि कब तक उसकी ये सजा जारी रहेगी….आखिर कब तक नारी वो दर्द सहेगी जिसकी वो बिल्कुल भी हकदार नहीं है.
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