15-01-2013, 05:23 PM
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Re: सफलता की सीढ़ी।
न खुशी में इतराएं, न निराशा से घबराएं
शायद ही कोई ऐसा हो, जो आपसे यह कहे कि वह कभी निराश नहीं हुआ. ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि बुरा हमेशा उन्हीं के साथ होता है. जबकि हकीकत यह है कि खुशियां और निराशा सभी के जीवन में होती हैं और ये दोनों ही स्थायी नहीं हो सकती.
आप चाहेंगे, तो भी नहीं. एक नगर में एक साधू महात्मा पधारे थे. उस नगर के राजा ने जब ये बात सुनी, तब उन्होंने साधु महात्मा को राजमहल पधारने के लिए निमंत्रण भेजा. साधू ने राजा का निमंत्रण स्वीकार किया और राजमहल गये.
राजा ने उनके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ा. महात्मा जी जब वहां से जाने लगे, तब राजा ने उनसे विनती की और कहा-महात्मन कुछ सीख देते जायें. साधु-महात्मा ने उनके हाथों में दो कागज की बंद पर्ची देते हुए कहा-पहला तब खोलना, जब आप बहुत सुखी रहो और दूसरा तब खोलना जब आप पर बहुत भारी संकट या मुश्किल आन पड़े.
इतना कह कर साधू ने राजा से विदा ली. राजा का सब कुछ अच्छा चल रहा था. चारों तरफ सुख और वैभव से उसका राज्य जगमगा रहा था. बस उसे अपने उत्तराधिकारी की चिंता खाये जा रही थी. वो होता, तो उससे सुखी इंसान और भला कौन होता? कुछ महीनों बाद उसके यहां पुत्र ने जन्म लिया.
अब राजा के जीवन में बस खुशियां ही खुशियां थी. उसे उस महात्मा की बात याद आयी. उसने पहली पर्ची खोला, उसमें लिखा था-ऐसा नहीं रहेगा. कुछ ही सालों बाद राजा के नगर पर दूसरे राजा ने आक्रमण कर दिया. इस युद्ध के दौरान सारी संपित्त और शाही खजाना खर्च हो गया. राजा पर भारी संकट आ पड़ा.
तब राजा को साधू महात्मा की दी हुई दूसरी पर्ची याद आयी. उन्होंने पलभर की भी देर किये बगैर उस पर्ची को खोला. इस बार उसमें लिखा था-यह भी नहीं रहेगा. राजा समझ गये. अभी उनका बुरा वक्त चल रहा है, यह भी ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा. खुशी और निराशा कुछ भी स्थायी नहीं होता, इसलिए सुख में इतराना नहीं चाहिए और दुख में घबराना नहीं चाहिए.
बात पते की
- यह न सोचें कि आपकी जिंदगी में निराशा ही है. ऐसा सोचने का सीधा असर आपके काम पर पड़ेगा.
- खुशी और निराशा कुछ भी स्थायी नहीं होता. इसलिए दोनों ही स्थिति में खुद को सामान्य बनाये रखें.
- सौरभ सुमन -
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