15-01-2013, 05:32 PM
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Re: सफलता की सीढ़ी।
..क्योंकि शब्दों के घाव बहुत गहरे होते हैं
कुछ लोगों की आदत होती है कि वे बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में सामनेवाले को कुछ भी बोल देते हैं, लेकिन थोड़ी देर बाद फिर सामान्य भी हो जाते हैं और सब कुछ नॉर्मल हुआ मानने लगते हैं. लेकिन शब्दों की टीस सामनेवाले को चुभती रहती है.
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था. छोटी-छोटी बात पर आपा खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि अब जब भी तुम्हें गुस्सा आये, तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोंक देना.
पहले दिन उस लड़के को 30 बार गुस्सा आया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी. पर धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी, उसे लगने लगा कि कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाये और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद तक काबू करना सीख लिया. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना टेंपर लूज नहीं किया.
जब उसने अपने पिता को ये बात बतायी तो उन्होंने फिर उसे एक काम दे दिया. उन्होंने कहा कि अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा न करो इस बाड़े से एक कील निकाल देना.
लड़के ने ऐसा ही किया और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया, जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी और अपने पिता को खुशी से ये बात बतायी. तब पिताजी उसका हाथ पकड़ कर उसे बाड़े के पास ले गये और बोले, बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो.
अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता, जैसा वो पहले था. जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वे शब्द भी इसी तरह सामनेवाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं.
इसलिए अगली बार जब क्रोध आये, तो पहले सोचिए कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोंकना चाहते हैं.
बात पते की
- जब भी गुस्सा आये, तो कम से कम यह जरूर कोशिश करें कि कुछ सेकेंड खुद को शांत रखें, कुछ बोलें नहीं.
- शब्दों के घाव बहुत गहरे होते हैं. इस घाव का जख्म जल्दी भरता नहीं, इसलिए शब्दों के महत्व को समझते हुए सोच-समझकर बोलें.
- सौरभ सुमन -
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