कामेश बंधू सूत्र का लिंक देने के लिए धन्यवाद.
ये रचना पुराने मित्रों ने पढ़ी होगी किन्तु फिर भी पोस्ट कर रहा हूँ. शायद नए मित्रों को पसंद आये |
काफी उदास है और पढने वालों से गुज़ारिश है की एक बार में पूरा पढ़ें अन्यथा मज़ा नहीं आएगा |
मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ,
तुम कैसे मुहब्बत करती हो?
तुम जब भी सामने आती हो
बस तुमको सुनना चाहता हूँ,
ऐ काश कभी तुम ये कह दो
मैं तुमसे मुहब्बत करती हूँ !
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो
तुम मुझको बेहद चाहती हो
लेकिन जाने क्यूँ तुम चुप हो
ये सोच के दिल घबराता है
ऐसा तो नहीं है ना जाना?
सब मेरी नज़र का धोखा है
मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ
मैं तुमसे कहना चाहता हूँ
लेकिन कुछ कह सकता भी नहीं
माना कि मुहब्बत है फिर भी
लब अपने खुल भी नहीं सकते
मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ
तुम कैसे मुहब्बत करती हो
ख्वाबों में बहुत कुछ बोलती हो
पर सामने चुप ही रहती हो
ये सोच के दिल घबराता है
तुमको खोने से डरता हूँ
मैं तुमसे ये कैसे पूछूं
तुम कैसे मुहब्बत करती हो?
मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ
तुम कैसे मुहब्बत करती हो
मुझे ठण्ड रास नहीं आती
मुझे बारिश से भी नफरत थी
पर जिस दिन से मालूम हुआ
ये मौसम तुमको भाता है
अब जब भी सावन आता है
बारिश में भीगता रहता हूँ
बूंदों में तुमको ढूँढता हूँ
कतरों से तुमको पूछता हूँ
मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ,
तुम कैसे मुहब्बत करती हो
जब हाथ दुआ को उठते हैं
अल्फाज़ कहीं खो जाते हैं
बस ध्यान तुम्हारा होता है
और आंसू गिरते रहते हैं
हर ख्वाब तुम्हारा पूरा हो
सो रब की मिन्नत करता हूँ
तुम कैसे मुहब्बत करती हो,
मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ !
राँझा भी नहीं, मजनू भी नहीं
फरहाद नहीं, अजरा भी नहीं |
वो किस्से हैं, अफ़साने हैं
वो गीत हैं, प्रेम तराने हैं
मैं जिंदा एक हकीकत हूँ
मैं ज़ज्बा-ए-इश्क की शिद्दत हूँ
मैं तुमको देख के जीता हूँ
मैं हर पल तुम पे मरता हूँ
मैं ऐसे मुहब्बत करता हूँ
तुम कैसे मुहब्बत करती हो ?