Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
ग़ज़ल
मत बोल के लाचार अदाकार हैं हम सब
आ जाए अगर वक्त तो हथियार हैं हम सब
दिलदार है मदहोश शराबी न समझना
बस खास इशारों के तलबगार हैं हम सब
माना के खंज़र पीठ मे अपनों ने है मारा
सोचूं गर इस सम्म के हिस्सेदार हैं हम सब
चाही है दिलोंजान से आराम परस्ती
आराम बेशूमार के परस्तार हैं हम सब
जालिम हंसा खूब बेहिसाब देकर गम
खो कर अपनी आस वफादार हैं हम सब
आजाद ख्यालात फिकरदार है 'रौनक'
हाँ उन्स-ओ-मोहब्बत के परस्तार हैं हम सब
दीपक खत्री 'रौनक'
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