Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
मैंने निचली अदालतों को यही कहा था लेकिन उसने मुझे तीन माह कैदे-बामशक्कत और तीन सौ रुपए की सजा दी - उसकी राय यह थी कि सच्चाई को अदब से हमेशा दूर रखना चाहिए - अपनी-अपनी राय है।
मैं तीन माह कैदे-बामशक्कत काटने के लिए हमेशा तैयार हूँ लेकिन यह तीन सौ रुपए का जुर्माना मुझसे अदा न हो सकेगा - चचाजान, आप नहीं जानते, मैं बहुत गरीब हूँ। मेहनत का तो मैं आदी हूँ, लेकिन रुपयों का आदी नहीं। मेरी उम्र उंतालीस बरस के करीब है और यह सारा दौर मेहनतकशी में ही गुजरा है। आप जरा गौर तो फरमाइए कि इतना बड़ा लेखक होने पर भी मेरे पास कोई पैकार्ड नहीं।
मैं गरीब हूँ, इसलिए कि मेरा देश गरीब है। मुझे तो फिर दो वक्त की रोटी किसी-न-किसी हीले मिल जाती है, मगर मेरे कुछ भाई ऐसे भी हैं जिन्हें यह भी नसीब नहीं होती।
मेरा देश गरीब है, जाहिल है - क्यों, यह तो आपको पूरी तरह से पता है - यह आपके और आपके भाईजान बुल के साझे साज का ऐसा तार है जिसे मैं छेड़ना नहीं चाहता, इसलिए कि आपकी सुनने की शक्ति पर भारी पड़ेगा - मैं यह खत एक खुशनसीब बेटे की हैसियत से लिख रहा हूँ, इसलिए मुझे पहले और आखिर तक खुशनसीब बेटा ही रहना चाहिए।
आप जरूर पूछेंगे : "तुम्हारा देश गरीब क्योंकर है, जबकि हमारे मुल्क से इतनी पैकार्डें, इतनी ब्युकें, मैक्स फैक्टर का इतना सामान वहाँ जाता है…"
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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