Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
ना ही इब्तेदा पे उदास हूँ, ना ही इन्तेहा पे मलाल है
बिना वस्ल कैसे गुजर गयी, मेरा ज़िन्दगी से सवाल है
तुझे पूजने में गुज़ार दी, मैंने सदियाँ लेल-ओ-नाहर की
तेरे इश्क से बंधी है, जो मेरी चाह ला ज़वाल है
मेरी चाहतों से बेखबर, तू वादियों में खो गया
तेरी याद का एक काफिला, मेरी ज़ात में बदहाल है
कई उलझनों से सूजी हुई, मेरी ज़िन्दगी की लकीर में
कहीं करबे माजी-ओ-हाल है, कहीं मौज-ए-दर्द-ए-विसाल है
कभी ख्वाहिशों की तलब मुझे, कभी बे-यकीनी का डर मुझे
मेरा नफस जिस सिम्त भी चले, वही रास्ता मेरा ज़वाल है
तेरे अक्स में पिन्हाँ हूँ मैं, तेरे दर्द से भी जुड़ा हूँ मैं
तुझे सोचना तो अज़ीम है, तुझे पाना कसब-ए-मुहाल है
कहीं इश्क है कहीं नफरतें, कहीं बेबसी की उदासियाँ
यही ज़िनदगी की हैं राहतें, यही ज़िन्दगी का वबाल है
कैसे दिल से 'शौकत' जुड़ा करें, कैसे दिल में अपने पनाह दें
इसी कशमकश में जिए चलो, यही बंदगी का ज़माल है
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