Re: एक सफ़र ग़ज़ल के साए में
गज़ल
(शायर: अकबर इलाहाबादी)
उम्र कब तक वफ़ा करेगी, ज़माना कब तक जफ़ा करेगा
मुझे क़यामत की हैं उम्मीदें, जो कुछ करेगा ख़ुदा करेगा
फ़लक जो बर्बाद भी करेगा, बुलंद इरादे मेरे रहेंगे
जो ख़ाक हूँगा तो ख़ाक से भी सदा बगूला उठा करेगा
ख़ुदा की पाक़ी पुकारता हूँ, हुआ करे नाखुशी बुतों को
मेरी ग़रज़ कुछ नहीं किसी से, तो फिर मेरा कोई क्या करेगा
जहाँ-ए-फ़ानी का हश्र ही को ख़याल कर मुस्तकिल नतीजा
यहाँ तो पैहम यही तरद्दुद यही तगैय्युर हुआ करेगा
अगरचे है दर्द-ओ-ग़म से मुज़तर यही है दर्द-ए-ज़बान-ए-‘अकबर’
ये दर्द जिसने दिया है हमको वही हमारी दवा करेगा
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