Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
कुछ इस तरह से इबादत खफ़ा हुयी हम से
नमाज़-ए-इश्क बहुत कम अदा हुयी हम से
गरीब आँखों में आंसू भी अब नहीं आते
इलाही रहम! कि फिर क्या खता हुयी हम से
हम इब्तदा ही कहाँ नेकियों की थे या रब !
तो फिर गुनाहों क्यों इन्तेहा हुयी हम से
ये बद-नसीबी हमारी है कम हुआ ऐसे
कि दुश्मनों के भी हक़ में दुआ हुयी हम से
सलूक मौत का हम से ना जाने कैसा हो
ये ज़िन्दगी तो बहुत में-मज़ा हुयी हम से
कहाँ छुपायेंगे महशर में खुद को आजार
कहाँ अता अत-ए-खैर-उल-वरा हुयी हम से
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