Re: ।।हंसीले कटीले व्यंग्य।।
इंडिया हमारा है। हमारे बाप का है। इसका हर माल हमारा है। इसकी बोटी-बोटी पर हमारा अधिकार है। इंडिया ने हमारे बाप को बहुत कुछ दिया। दादा को सब कुछ दिया। अब हमें क्यों न देगा इंडिया ? देना पड़ेगा उसे। इंडिया में रहकर इंडिया की दादागिरी नहीं चलने देंगे। यह अन्याय हमारे साथ ही क्यों ? सबके दिया, हमें भी दे इंडिया। सबने खाया इंडिया को, हम भी खाएँगे। सबने तोड़ा, हम भी तोड़ेंगे इंडिया।
इंडिया दे रहा है तो सबको दे। खिला रहा है तो सबको खिलाए। बाँट रहा है तो सबको बाँटे। बराबर-बराबर। हमको कम दूसरों को ज्यादा देगा तो इसकी ईंट-से-ईंट बजा देंगे। इंडिया पड़ौसी को खिलाता रहे, हम देखते रहें। क्यों ? वे लूटें और हम देखें ? इंडिया देने लायक है तो देता क्यों नहीं ? हम उसके वासी हैं। हमें न देगा तो किसे देगा ? किसी दूसरे देशवासी को देगा, तो देख लेंगे इंडिया को। हमारे सामने हमें छोड़कर दूसरों को देगा क्या ? नहीं देने देंगे। हमारा इंडिया है तो हमें ही देगा। नहीं देगा तो छीन लेंगे। लूट लेंगे। चकाचक दे इंडिया ! देता क्यों नहीं है रे ?
जिसे भी देता है इंडिया, उसे छप्पर फाड़कर देता है। जेबें, तिजोरी, घर सब भर देता है। खूब खाओ। मौज उड़ाओ। इंडिया जो दे रहा है। देखो, यह माल इंडिया का है। इंडिया के लोंगों के लिए है। इंडिया में ही खाया जा रहा है। यह हमारा इंडिया है। इसकी तरफ दूसरा आँख उठाएगा तो आँख फोड़ देंगे। हाथ उठाएगा तो हाथ तोड़ देंगे। लात उठाएगा तो लात तोड़ देंगे। यह हमारा इंडिया है, इस पर हम हाथ उठाएँ या टाँग उठाएँ, यह हमारा निजी मामला है। जातीय मामला भी है। हम अपने जातीय गौरव की गूदड़ी में दूसरे को नहीं घुसने देंगे। इसमें हमीं घुसेंगे और हम ही फाड़ेंगे। फाड़ने के लिए भी हम ही अधिकृत हैं।
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