Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
खेत-बाग,नदी- ताल,जंगल-पहाड़ ;
वर्षा वनकन्या -सी कर रही विहार ।
जन्मी आषाढ़-घर, सावन की पाली ;
भादोँ ने पहनाई चूनर हरियाली ;
पवन मानसूनी है करे छेड़-छाड़ ।
गले मिले चिरक्वाँरी रेवा के पाट ;
लगी गली-खोर कीच-काई की हाट ;
घर-घर चौमास छाए पाहुन-त्योहार।
श्रम के हक-भाग कोदो-कुटकी का भात ;
कर्ज़ चढ़ा धान, मका-ज्वारी के माथ ;
पानी ही पानी दृग-देहरी,दिल-द्वार ।
निजहंता मुक्तिपथ चुना विवशताओँ ने ;
रक्तिम उन्नति रोकी नहीँ आकाओँ ने ;
रुका न, रुकेगा यह सियासती बाज़ार ।
मीनारोँ पर बैठी बहरी ख़ुदाई ;
लंगड़ी-गूँगी लगती सारी प्रभुताई ;
बाज़ारोँ-बनियोँ की गिरवी सरकार ।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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