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Old 08-02-2013, 07:55 PM   #29
jai_bhardwaj
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सभी धर्म मनुष्यों को सच्चाई की शिक्षा देते हैं तो फिर इस्लाम ही का अनुकरण क्यों किया जाए

प्रश्नः सभी धर्म अपने अनुयायियों को अच्छे कामों की शिक्षा देते हैं तो फिर किसी व्यक्ति को इस्लाम का ही अनुकरण क्यों करना चाहिए? क्या वह किसी अन्य धर्म का अनुकरण नहीं कर सकता?

उत्तरः

इस्लाम और अन्य धर्मों में विशेष अंतर

यह ठीक है कि सभी धर्म मानवता को सच्चाई और सद्कर्म की शिक्षा देते हें और बुराई से रोकते हैं किन्तु इस्लाम इससे भी आगे तक जाता है। यह नेकी और सत्य की प्राप्ति और व्यक्तिगत एवं सामुहिक जीवन से बुराईयों को दूर करने की दिशा में वास्तविक मार्गदर्शक भी है। इस्लाम न केवल मानव प्रकृति को महत्व देता है वरन् मानव जगत की पेचीदगियों की ओर भी सजग रहता है। इस्लाम एक ऐसा निर्देश है जो अल्लाह तआला की ओर से आया है, यही कारण है कि इस्लाम को ‘‘दीन-ए-फ़ितरत’’ अर्थात ‘प्राकृतिक धर्म’ भी कहा जाता है।

उदाहरण

इस्लाम केवल चोरी-चकारी, डाकाज़नी को रोकने का ही आदेश नहीं देता बल्कि इसे समूल समाप्त करने के व्यावहारिक तरीके भी स्पष्ट करता है।

(क) इस्लाम चोरी, डाका इत्यादि अपराध समाप्त करने के व्यावहारिक तरीके सपष्ट करता है
सभी प्रमुख धर्मों में चोरी चकारी और लूट आदि को बुरा बताया जाता है। इस्लाम भी यही शिक्षा देता है तो फिर अन्य धर्मों और इस्लाम की शिक्षा में क्या अंतर हुआ? अंतर इस तथ्य में निहित है कि इस्लाम चोरी, डाके आदि अपराधों की केवल निन्दा करने पर ही सीमित नहीं है, वह एक ऐसा मार्ग भी प्रशस्त करता है जिस पर चलकर ऐसा समाज विकसित किया जाए, जिस में लोग ऐसे अपराध करें ही नहीं।

(ख) इस्लाम में ज़कात का प्रावधान है
इस्लाम ने ज़कात देने की एक विस्तृत व्यवस्था स्थापित की है। इस्लामी कानून के अनुसार प्रत्येक वह व्यक्ति जिसके पास बचत की मालियत (निसाब) अर्थात् 85 ग्राम सोना अथवा इतने मूल्य की सम्पत्ति के बराबर अथवा अधिक हो, वह साहिब-ए-निसाब है, उसे प्रतिवर्ष अपनी बचत का ढाई प्रतिशत भाग ग़रीबों को देना चाहिए। यदि संसार का प्रत्येक सम्पन्न व्यक्ति ईमानदारी से ज़कात अदा करने लगे तो संसार से दरिद्रता समाप्त हो जाएगी और कोई भी मनुष्य भूखा नहीं मरेगा।

(ग) चोर, डकैत को हाथ काटने की सज़ा
इस्लाम का स्पष्ट कानून है कि यदि किसी पर चोरी या डाके का अपराध सिद्ध हो तो उसके हाथ काट दिया जाएंगे। पवित्र क़ुरआन में आदेश हैः
‘‘और चारे, चाहे स्त्री हो अथवा पुरुष, दोनों के हाथ काट दो, यह उनकी कमाई का बदला है, और अल्लाह की तरफ़ से शिक्षाप्रद सज़ा, अल्लाह की क़ुदरत सब पर विजयी है और वह ज्ञानवान एवं दृष्टा है।’’ (पवित्र क़ुरआन , सूरह अल-मायदा, आयत 38)
ग़ैर मुस्लिम कहते हैं ‘‘इक्कीसवीं शताब्दी में हाथ काटने का दण्ड? इस्लाम तो निर्दयता और क्रूरता का धर्म है।

(घ) परिणाम तभी मिलते हैं जब इस्लामी शरीअत लागू की जाए
अमरीका को विश्व का सबसे उन्नत देश कहा जाता है, दुर्भाग्य से यही देश है जहाँ चोरी और डकैती जैसे अपराधों का अनुपात विश्व में सबसे अधिक है। अब ज़रा थोड़ी देर को मान लें कि अमरीका में इस्लामी शरीअत कानून लागू हो जाता है अर्थात प्रत्येक धनाढ्य व्यक्ति जो साहिब-ए-निसाब हो पाबन्दी से अपने धन की ज़कात अदा करे (चाँद के वर्ष के हिसाब से) और चोरी-डकैती का अपराध सिद्ध हो जाने के पश्चात अपराधी के हाथ काट दिये जाएं, ऐसी अवस्था में क्या अमरीका में
अपराधों की दर बढ़ेगी या उसमें कमी आएगी या कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा? स्वाभाविक सी बात है कि अपराध दर में कमी आएगी। यह भी होगा कि ऐसे कड़े कानून के होने से वे लोग भी अपराध करने से डरेंगे जो अपराधी प्रवृति के हों।
मैं यह सवीकार करता हूँ कि आज विश्व में चोरी-डकैती की घटनाएं इतनी अधिक होती हैं कि यदि तमाम चारों के हाथ काट दिये जाएं तो ऐसे लाखों लोग होंगे जिनके हाथ कटेंगे। परन्तु ध्यान देने योग्य यह तथ्य है कि जिस समय आप यह कानून लागू करेंगे, उसके साथ ही चोरी और डकैटी की दर में कमी आ जाएगी। ऐसे अपराध करने वाला यह कृत्य करने से पहले कई बार सोचेगा क्योंकि उसे अपने हाथ गँवा देने का भय भी होगा। केवल सज़ा की कल्पना मात्र से चोर डाकू हतोत्साहित होंगे और बहुत कम अपराधी अपराध का साहस जुटा पाएंगे। अतः केवल कुछ लोगों के हाथ काटे जाने से लाखों करोड़ो लोग चोरी-डकैती से भयमुक्त होकर शांति का जीवन जी सकेंगे। इस प्रकार सिद्ध हुआ कि इस्लामी शरीअत व्यावहारिक है और उससे सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

उदाहरण

इस्लाम में महिलाओं का अपमान और बलात्कार हराम है। इस्लाम में स्त्रियों के लिये हिजाब (पर्दे) का आदेश है और व्यभिचार (अवैध शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाने पर व्याभिचारी के लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है
(क) इस्लाम में महिलाओं के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती और बलात्कार को रोकने का व्यावहारिक तरीकष स्पष्ट किया गया है
सभी प्रमुख धर्मों में स्त्री के साथ बलात्कार और ज़ोर-ज़बरदस्ती को अत्यंत घिनौना अपराध माना गया है। इस्लाम में भी ऐसा ही है। तो फिर इस्लाम और अन्य धर्मों की शिक्षा में क्या अंतर है?
यह अंतर इस यर्थाथ में निहित है कि इस्लाम केवल नारी के सम्मान की प्ररेणा भर को पर्याप्त नहीं समझता, इस्लाम ज़ोर ज़बरदस्ती और बलात्कार को अत्यंत घृणित अपराध कष्रार देकर ही संतुष्ट नहीं हो जाता बल्कि वह इसके साथ ही प्रत्यक्ष मार्गदर्शन भी उपलब्ध कराता है कि समाज से इन अपराधों को कैसे मिटाया जाए।

(ख) पुरुषों के लिए हिजाब

इस्लाम में हिजाब की व्यवस्था है। पवित्र क़ुरआन में पहले पुरुषों के लिए हिजाब की चर्चा की गई है उसके बाद स्त्रियों के हिजाब पर बात की गई है। पुरुषों के लिए हिजाब का निम्नलिखित आयत में आदेश दिया गया हैः
‘‘हे नबी! (सल्लॉ) मोमिन पुरुषों से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों (गुप्तांगों) की हिफ़ाज़त करें। यह उनके लिए पाकीज़ा तरीकष है। जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उस से बाख़बर रहता है। (पवित्र क़ुरआन , 24ः30)
जिस क्षण किसी पुरुष की दृष्टि (नामहरम) स्त्री पर पड़े और कोई विकार या बुरा विचार मन में उत्पन्न हो तो उसे तुरन्त नज़र नीची कर लेनी चाहिए।

(ग) स्त्रियों के लिए हिजाब

स्त्रियों के लिए हिजाब की चर्चा निम्नलिखित आयत में की गई है।

‘‘हे नबी! (सल्लॉ) मोमिन औरतों से कह दो कि अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें, अपना बनाव सिंघार न दिखाएं, केवल उसके जो ज़ाहिर हो जाए और अपने सीनों पर अपनी ओढ़नियों का आँचल डाले रहें।’’ (पवित्र क़ुरआन , 24ः31)

स्त्रियों के लिए हिजाब की व्याख्या यह है कि उनका शरीर पूरी तरह ढका होना चाहिए। केवल चेहरा और कलाईयों तक। हाथ वह भाग हैं जो ज़ाहिर किए जा सकते हैं फिर भी यदि कोई महिला उन्हें भी छिपाना चाहे तो वह शरीर के इन भागों को भी छिपा सकती है परन्त कुछ उलेमा-ए-दीन का आग्रह है कि चेहरा भी ढका होना चाहिए।

(घ) छेड़छाड़ से सुरक्षा, हिजाब

अल्लाह तआला ने हिजाब का आदेश क्यों दिया है? इसका उत्तर पवित्र क़ुरआन ने सूरह अहज़ाब की इस आयत में उपलब्ध कराया हैः

‘‘हे नबी! (सल्लॉ) अपनी पत्नियों और पुत्रियों और ईमान वालों की स्त्रियों से कह दो कि अपने ऊपर अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें। यह उचित तरीकष है ताकि वह पहचान ली जाएं और सताई न जाएं। अल्लाह क्षमा करने वाला और दयावान है।’’ (पवित्र क़ुरआन , सूरह अहज़ाब, आयत 59)

पवित्र क़ुरआन कहता है कि स्त्रियों को हिजाब करना इसलिए ज़रूरी है ताकि वे सम्मानपूर्वक पहचानी जा सकें और यह कि हिजाब उन्हें छेड़-छाड़ से भी बचाता है।

(ङ) जुड़वाँ बहनों का उदाहरण

जैसा कि हम पीछे भी बयान कर चुके हैं, मान लीजिए कि दो जुड़वाँ बहनें हैं जो समान रूप से सुन्दर भी हैं। एक दिन वे दोनों एक साथ घर से निकलती हैं। एक बहन ने इस्लामी हिजाब कर रक्खा है अर्थात उसका पूरा शरीर ढंका हुआ है। इसके विपरीत दूसरी बहन ने पश्चिमी ढंग का मिनी स्कर्ट पहना हुआ है अर्थात उसके शरीर का पर्याप्त भाग स्पष्ट दिखाई दे रहा है। गली के नुक्कड़ पर एक लफ़ंगा बैठा है जो इस प्रतीक्षा में है कि कोई लड़की वहाँ से गुज़रे अैर वह उसके साथ छेड़छाड़ और शरारत करे। सवाल यह है कि जब वे दोनों बहनें वहाँ पहुचेगी तो वह लफ़ंगा किसको पहले छेड़ेगा। इस्लामी हिजाब वाली को अथवा मिनी स्कर्ट वाली को? इस प्रकार के परिधान जो शरीर को छिपाने की अपेक्षा अधिक प्रकट करें एक प्रकार से छेड़-छाड़ का निमंत्रण देते हैं। पवित्र क़ुरआन ने बिल्कुल सही फ़रमाया है कि हिजाब स्त्री को छेड़-छाड़ से बचाता है।

(च) ज़ानी (कुकर्मी) के लिए मृत्युदण्ड

यदि किसी (विवाहित) व्यक्ति के विरुद्ध ज़िना (अवैध शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाए तो इस्लामी शरीअत के अनुसार उसके लिए मृत्युदण्ड है, आज के युग में इतनी कठोर सज़ा देने पर शायद ग़ैर मुस्लिम बुरी तरह भयभीत हो जाएं। बहुत से लोग इस्लाम पर निर्दयता और क्रूरता का आरोप लगाते हैं। मैंने सैंकड़ो ग़ैर मुस्लिम पुरुषों से एक साधारण सा प्रश्न किया। मैंने पूछा कि ख़ुदा न करे, कोई आपकी पत्नी या माँ, बहन के साथ बलात्कार करे और आप को उस अपराधी को सज़ा देने के लिए जज नियुक्त किया जाए और अपराधी आपके सामने लाया जाए तो आप उसे क्या सज़ा देंगे? उन सभी ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि ‘‘हम उसे मौत की सज़ा देंगे।’’ कुछ लोग तो इससे आगे बढ़कर बोले, ‘‘हम उसको इतनी यातनाएं देंगे कि वह मर जाए।’’

इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई आपकी माँ, बहन या पत्नि के साथ बलात्कार का अपराधी हो तो आप उस कुकर्मी को मार डालना चाहते हैं। परन्तु यदि किसी दूसरे की पत्नी, माँ, बहन की इज़्ज़त लूटी गई तो मौत की सज़ा क्रूर और अमानवीय हो गई। यह दोहरा मानदण्ड क्यों है?

(छ) अमरीका में बलात्कार की दर सब देशों से अधिक है

अब मैं एक बार फिर विश्व के सबसे अधिक आधुनिक देश अमरीका का उदाहरण देना चाहूँगा। एफ़.बी.आई की रिपोर्ट के अनुसार 1995 के दौरान अमरीका में 10,255 (एक लाख दो सौ पचपन) बलात्कार के मामले दर्ज हुए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बलात्कार की समस्त घटनाओं में से केवल 16 प्रतिशत की ही रिपोर्ट्स दर्ज कराई गईं। अतः 1995 में अमरीका में बलात्कार की घटनाओं की सही संख्या जानने के लिए दर्ज मामलों की संख्या को 6.25 से गुणा करना होगा। इस प्रकार पता चलता है कि बलात्कार की वास्तविक संख्या 640,968 (छः लाख, चालीस हज़ार, नौ सौ अड़सठ) है।

एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया कि अमरीका में प्रतिदिन बलात्कार की 1900 घटनाएं होती हैं। अमरीकी प्रतिरक्षा विभाग के एक उप संस्थान ‘‘नैशनल क्राइम एण्ड कस्टमाईज़ेशन सर्वे, ब्यूरो आफ़ जस्टिस’’ द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार केवल 1996 के दौरान अमरीका में दर्ज किये गए बलात्कार के मामलों की तादाद तीन लाख, सात हज़ार थी जबकि यह संख्या वास्तविक घटनाओं की केवल 31 प्रतिशत थी। अर्थात सही संख्या जानने के लिए हमें इस तादाद को 3226 से गुणा करना होगा। गुणान फल से पता चलता है कि 1996 में अमरीका में बलात्कारों की वास्तविक संख्या 990,332 (नौ लाख, नब्बे हज़ार, तीन सौ बत्तीस) थी। अर्थात् उस वर्ष अमरीका में प्रतिदिन 2713 बलात्कार की वारदातें हुईं अर्थात् प्रति 32 सेकेण्ड एक बलात्कार की घटना घटी। कदाचित् अमरीका के बलात्कारी काफ़ी साहसी हो गए हैं। एफ.बी.आई की 1990 वाली रिपोर्ट में तो ये भी बताया गया था कि केवल 10 प्रतिशत बलात्कारी ही गिरफ़्तार हुए। यानी वास्तविक वारदातों के केवल 16 प्रतिशत अपराधी ही कानून के शिकंजे में फंसे। जिनमें से 50 प्रतिशत को मुकदमा चलाए बिना ही छोड़ दिया गया। इसका मतलब यह हुआ कि केवल 8 प्रतिशत बलात्कारियों पर मुकष्दमे चले। दूसरे शब्दों में यही बात इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यदि अमरीका में कोई व्यक्ति 125 बार बलात्कार का अपराध करे तो संभावना यही है कि उसे केवल एक बार ही उसको सज़ा मिल पाएगी। बहुत-से अपराधी इसे एक अच्छा ‘‘जुआ’’ समझते हैं।

यही रिपोर्ट बताती है कि मुक़दमे का सामना करने वालों में 50 प्रतिशत अपराधियों को एक वर्ष से कम कारावास की सज़ा सुनाई गई। यद्यपि अमरीकी कानून में बलात्कार के अपराध में 7 वर्ष सश्रम कारावास का प्रावधान है। यह देखा गया है कि अमरीकी जज साहबान पहली बार बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार लोगों के प्रति सहानुभूति की भावना रखते हैं। अतः उन्हें कम सज़ा सुनाते हैं। ज़रा सोचिए! एक अपराधी 125 बार बलात्कार का अपराध करता है और पकड़ा भी जाता है तब भी उसे 50 प्रतिशत संतोष होता है कि उसे एक वर्ष से कम की सज़ा मिलेगी।

(ज) इस्लामी शरीअत कानून लागू कर दिया जाए तो परिणाम प्राप्त
होते हैं

अब मान लीजिए कि अमरीका में इस्लामी शरीअत कानून लागू कर दिया जाता है। जब भी कोई पुरुष किसी नामहरम महिला पर निगाह डालता है और उसके मन में कोई बुरा विचार उत्पन्न होता है तो वह तुरन्त अपनी नज़र नीची कर लेता है। प्रत्ेयक स्त्री इस्लामी कानून के अनुसार हिजाब करती है अर्थात अपना सारा शरीर ढाँपकर रखती है। इसके बाद यदि कोई बलात्कार का अपराध करता है तो उसे मृत्यु दण्ड दिया जाए।

प्रश्न यह है कि यह कानून अमरीका में लागू हो जाने पर बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि होगी अथवा कमी आएगी या स्थिति जस की तस रहेगी?

स्वाभाविक रूप से इस प्रश्न का उत्तर होगा कि इस प्रकार का कानून लागू होने से बलात्कार घटेंगे। इस प्रकार इस्लामी शरीअत के लागू होने पर तुरन्त परिणाम प्राप्त होंगे।

मानव समाज की समस्त समस्याओं का व्यावहारिक समाधान इस्लाम में मौजूद है
जीवन बिताने का श्रेष्ठ उपाय यही है कि इस्लामी शिक्षा का अनुपालन किया जाए क्योंकि इस्लाम केवल ईश्वरीय उपदेशों का संग्रह मात्र नहीं है वरन् यह मानव समाज की समस्त समस्याओं का सकारात्मक समाधान प्रस्तुत करता है। इस्लाम व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों स्तरों पर सकारात्मक ओर व्यावहारिक मार्गदर्शन करता है। इस्लाम विश्व की श्रेष्ठतम जीवन पद्धति है क्योंकि यह एक स्वाभाविक विश्वधर्म है जो किसी विशेष जाति, रंग अथवा क्षेत्र के लोगों तक सीमित नहीं है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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