Re: भारतीय कला जगत के अनश्वर नागरिक
राजा रवि वर्मा : भारतीय कला जगत के अनश्वर नागरिक सुबह चार बजे उठ कर अपने चित्र बनाते थे। प्रकाश और छाया के सूक्ष्म अध्ययन और आकलन के लिए यह समय सर्वाधिक उपयुक्त लगता है - अँधेरे की विदाई और उजाले की दबे पाँव आमद। एक नीम अँधेरे और नीम उजाले के बीच बैठ कर वे घंटों अपने बनाए चित्र को देखा करते थे।
उनकी कृतियाँ धीरे-धीरे पूरे देश में लोकप्रिय होने लगी, जबकि भारतीय कलाजगत उन्हें निरंतर निरस्त कर रहा था। उनकी कलादृष्टि राजपूत तथा मुगल कला के मिश्रण से निथर कर बनी चित्रदृष्टि को ठेस पहुँचा रही थी। उन्होंने शांतनु और मत्स्यगंधा, नल-दमयंती, श्रीकृष्ण-देवकी, अर्जुन-सुभद्रा, विश्वामित्र-मेनका जैसे जो चित्र बनाए, उनमें उन्होंने स्त्री देह का भारतीय कलादृष्टि के परम्परागत ढाँचे में बहुत शाइस्तगी से एक नया ही सौंदर्यशास्त्र रचा, लेकिन उन्हें भीतर कहीं यह बात सालती थी कि कलाकार और कला समीक्षक उनके काम को लगातार और निर्ममता के साथ निरस्त कर रहे हैं।
अतः उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ उत्तर भारत की सांस्कृतिक यात्रा की ताकि वे उसकी सांस्कृतिक और भौगोलिक समग्रता को पूरी तरह आत्मसात कर सकें। बाद इसके ही उन्होंने अपनी चित्रकृतियों में भूदृश्य भी चित्रित करना शुरू किया। चित्र में पृष्ठभूमि के रूप में जो लैंडस्केप होते, वह उनके अनुज किया करते थे। इस बीच दीवान शेषशय्या ने टी. माधवराव के जरिए राजा रवि वर्मा : भारतीय कला जगत के अनश्वर नागरिक को बड़ौदा के सयाजीराव महाराज से मिलवाया। बड़ौदा में रह कर उन्होंने पोर्टेट तो किए ही, देवी-देवताओं को विषय बना कर कई अद्भुत ऐतिहासिक चित्रकृतियाँ तैयार कीं। उनकी कृतियों से प्रभावित हो कर स्वामी विवेकानंद ने 'वर्ल्ड रिलीजन कांग्रेस ऑफ शिकागो' में उनकी चित्र कृतियाँ प्रदर्शनार्थ मँगवाईं, जहाँ उन्हें पदक भी प्रदान किए गए।
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