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Dark Saint Alaick
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‘बोलियों के लिए अलग से अकादमी होनी चाहिए’ : के. सच्चिदानंदन


नई दिल्ली। साहित्य अकादमी पुरस्कार 2012 के विजेताओं का मानना है कि बोलियों के लिए अधिक काम करने की जरूरत है और इसके लिए अलग से ‘आदिवासी एवं लोक भाषा अकादमी’ होनी चाहिए। मलयालम में पुरस्कृत के. सच्चिदानंदन ने कहा कि साहित्य अकादमी और नेशनल बुक ट्रस्ट मिलकर भी काम करें तो देश की करीब 1600 मातृभाषाओं (बोलियों) के साथ न्याय नहीं कर पाएंगी। इसके लिए काम करने के लिए अलग से ‘आदिवासी एवं लोकभाषा अकादमी’ होनी चाहिए। उन्होंने हालांकि, कहा कि पूर्वोत्तर के राज्यों की बोली एवं भाषा के लिए भाषा केंद्र है और वाचिक साहित्य को लिखित साहित्य में बदलने के लिए काफी काम हुआ है। मगर बोलियों के साहित्य को आगे लाने के लिए अलग से बजट होना चाहिए। बोलियों एवं बाल साहित्य में तकनीक का सही तरीके से इस्तेमाल पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि स्कूलों में अलग से लोक एवं आदिवासी भाषा उत्सव होना चाहिए। कुछेक संगठन शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं, लेकिन इसी तरह बोलियों के लिए काम करने के लिए भी स्वयंसेवी संगठन होने चाहिए। साहित्य अकादमी से जुड़े रहे लेखक ने कहा कि पानी, प्रकृति और वायु की तरह ही संस्कृति और ज्ञान किसी वर्ग विशेष की संपदा नहीं है। मेरा सुझाव है कि साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट और प्रकाशन विभाग को लोगों तक इंटरनेट जैसे विभिन्न माध्यमों से सहजता से पहुंचाने के लिए काम करना चाहिए। मराठी में पुरस्कृत जयंत पवार ने कहा कि सभी भाषाओं के मूल में बोलियां ही हैं, लेकिन बाद में बोलियों को दोयम दर्जे का समझ लिया गया। इस तरह की गलतफहमी से निकालकर सभी बोली एवं भाषाओं को समानता का समझा जाना चाहिए।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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