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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने किशनगंगा के लिये पानी का रुख मोड़ने का भारत का अधिकार जायज ठहराया
नई दिल्ली। किशनगंगा पनबिजली परियोजना पर भारत-पाक विवाद मामले में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने बिजली संयंत्र के लिये पानी का रुख मोड़ने के भारत के अधिकार को जायज करार दिया है। लेकिन साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि नयी दिल्ली पाकिस्तान के कृषि संबंधी हित सुनिश्चित करने के लिये पानी का न्यूनतम बहाव बनाये रखने को बाध्य है। गौरतलब है कि पाकिस्तान ने दावा किया है कि जम्मू कश्मीर स्थित इस परियोजना से नदी के 15 फीसदी पानी का उसका हक छीन लिया जायेगा। इसके अलावा पाकिस्तान ने भारत पर उसके नीलम-झेलम पनबिजली परियोजना को नुकसान पहुंचाने के लिये नदी का रुख मोड़ने का भी आरोप लगाया है। पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि 1960 के प्रावधानों के तहत 17 मई 2010 को भारत के खिलाफ मध्यस्थता का रुख अपनाया। नीदरलैंड के दी हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने कल दिये अपने ‘आंशिक फैसले’ में कहा कि किशनगंगा पनबिजली परियोजना (केएसईपी) में संधि के तहत ‘नदी के बहते पानी से चलने वाला’ संयंत्र है और इसके तहत भारत परियोजना से बिजली उत्पादन के लिये किशनगंगा-नीलम नदी के पानी का रुख मोड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा कि इस परियोजना को चलाने के दौरान भारत पर किशनगंगा:नीलम नदी में पानी का न्यूनतम बहाव बनाये रखने की भी बाध्यता है। न्यायालय ने कहा कि इस साल के अंत तक दोनों देशों की ओर से उपलब्ध कराये गये नये जलविज्ञान संबंधी आंकड़ों के आधार पर वह अपने ‘अंतिम फैसले’ में न्यूनतम बहाव की दर तय करेगा। फैसले में कहा गया कि यह संधि भारत को किसी अनअपेक्षित आपात स्थिति के अलावा पाकिस्तान को आवंटित इन नदियों के जलाशयों में पानी का स्तर ‘स्थिर संग्रह स्तर’ के नीचे करने की इजाजत नहीं देती। संधि के मुताबिक ‘स्थिर संग्रह स्तर’ संग्रह का वह हिस्सा है जिसे किसी क्रियाशील प्रक्रिया में इस्तेमाल नहीं किया जाता। न्यायालय का यह फैसला किसी एक के पक्ष में झुका हुआ प्रतीत नहीं होता।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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