Re: मेरी कहानियां/ आख़िरी दिन तक
दिन पर दिन रामधन का मन डूबता जा रहा था. पहले जहाँ लक्ष्मी पहले जहाँ लक्ष्मी का इलाज करवा रहा था उस डॉक्टर की बात उसे सत्य प्रतीत होने लगी थी. उसने सलाह दी थी कि वह अपनी पत्नी को किसी सेनेटेरियम में भिजवा दे और अच्छे डोक्टरों से इलाज करवाये. लेकिन इस सब के लिए रूपए कहाँ थे? जितने थे वह अब तक के इलाज में खर्च हो चुके थे. कुछ उधार भी मांग टांग कर ले लिया. अब तो मरे हुए मन से जो मजदूरी कर लेता है उससे किसी तरह दो चुल्हा ही जलाया जा सकता था, बाकी कुछ नहीं. दवा भी धर्मार्थ औषधालय से लेनी शुरू कर दी थी. अपनी परिस्थितियों के हाथ में वह बुरी तरह जकड़ गया था. बचपन से गरीबी के आँचल से खेलते हुए वह बड़ा हुआ किन्तु पहली बार गरीबी ने उसके अस्तित्व पर इतना जोर का तमाचा मारा था. पिछले एक-डेढ़ माह में उसके हँसते खेलते व्यक्तित्व पर एक आवरण सा छा गया था और उसके ऊपर बरसाती बनस्पति की तरह कोई दूसरा व्यक्तित्व उग आया था.
जाने कितनी देर तक वह उसी प्रकार बैठा रहा. किशन के आने की आहात से उसकी तन्मयता भंग हुयी. अँधेरा छितराने लगा था, उसने उठ कर लालटेन जला दिया. उसकी बीमार रोशनी में रामधन ने आशा की किरण ढूँढने की एक असफल कोशिश की और चूल्हे के निकट आ कर भोजन बनाने की तैयारी करने लगा.
भोजन का मन न करता. किन्तु पुत्र को कोई आघात न पहुंचे इस लिए उसके साथ थोडा बहुत खा लिया. शरीर धर्म भी तो पूरा करना होता है. किश्न की नन्हीं बातों से उसके मन को किंचित सनोश प्राप्त हुआ. इस छोटी सी गृहस्थी में वही केंद्र बिन्दु हो गया था. उसी से घर में रौनक थी. वही था माँ-बाप की आँखों का तारा और उनके भविष्य का सपना. माँ- बाप का जीवन जैसे उसी के लिए था.
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