Re: मेरी कहानियां/ आख़िरी दिन तक
पुत्र को सुला कर रामधन वापिस पत्नि के पास आ बैठा. पीड़ा से लक्ष्मी कभी कभी कराह उठती. पत्नि की कराह सुन कर उसके शरीर में भी दर्दीली झनझनाहट फ़ैल जाती. हथोड़े से पड़ने लगते .लक्ष्मी की पैदा आज अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक थी. रामधन व्याकुल था.
“लक्ष्मी!”
“हाँ..”
“कैसी तबीयत है?”
“ठीक .. ही... है... आ ...ह..” लक्ष्मी कराह दी.
रामधन कुछ न बोला. वह लक्ष्मी का सिर दबाने लग गया.
“सुनो...”
“हूँ..”
“ल..लग..ता.. है.. अब...”
“क्या..??”
जिस विचार को रामधन अपने म से बलपूर्वक दूर किये हुए था, उसे लक्ष्मी ने इतनी सहजता से प्रकट कर दिया था. अर्थात लक्ष्मी को भी अपनी आसन्न मृत्यु का आभास हो गया है.
“..आ..ह!..अब...मैं...जी...न ..सकूंगी...दम...घु..ट..ता...जा .. रहा...है...”
“न लक्ष्मी, ऐसा न कह! मैं तुझे मरने नहीं दूंगा. मुझे ...किशन को छोड़ कर तू कहीं नहीं जायेगी. मेरी कसम खा! ऐसी अशुभ बातें फिर न कहेगी.” रामधन तड़प कर बोला.
अत नहीं यह लक्ष्मी ने सुना या नहीं. वह अपनी धुन में बोले जा रही थी –
“ अ..प..ना..ध्या..न....र..ख़..ना....कि..श..न....का... .भी....”
“बस करो लक्ष्मी, और कुछ मत बोल...”
“...उसको...अ..प..ने...क..ले...जे....से..ल..गा...कर ...र..ख़..ना....आ..खिरी....दि..न...तक..., आ..खि..री....दि..न...तक.., आ..खि..री....दि..न...तक ....कि..श..न.. को अ..प..ने... क.ले..जे...से... ल...गा....कर ...र..ख़..ना.... आ..खिरी....दि..न...तक.. ओह..!”
सारी रात लक्ष्मी इसी तरह अस्फुट शब्दों में बोलती रही. रामधन उसी प्रकार उसके पास बैठा रहा. दिन चढ़ने के साथ ही लक्ष्मी की हालत और बिगड़ने लगी. रामधन दौड़ कर डॉक्टर को बुला लाया. डॉक्टर ने एक इंजेक्शन दिया और रामधन को एक ओर ले जा कर उसने स्पष्ट किया कि अब लक्ष्मी की इहलीला समाप्ति के निकट आ चुकी है.
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