Re: मेरी कहानियां/ आख़िरी दिन तक
किशन को ले कर वह घर आ गया. उसको उसने आते ही सुला दिया. झुक कर उसके माथे को चूमा और लक्ष्मी की चारपाई के पास आ कर सिरहाने की ओर भूमि पर पहले ही की तरह बैठ गया और बारी बारी से सिरहाने, बिस्तर, खाट के पाए आदि का स्पर्श करके जैसे कुछ याद करने लगा. दारू का असर होने लगा था. स्मृतियाँ भी चंचल और अस्थिर होने लगीं. गला भर्राने लगा और शरीर में एक ढीलापन व्याप्त होने लगा. नींद की झपकी आने लगी, क्षण भर को लक्ष्मी और किशन के चेहरे उसके अंतर में कौंध जाते.
“मेरा बेटा ....मेरा..प्यारा बेटा” कहते हुए वह उठा और लड़खड़ाते क़दमों से किशन की खाट तक आया. उसका सिर घूम रहा था. कष्ट से उसने अपनी आँखें खोलते हुए बालक को बड़ी ममता, प्यार व श्रद्धा की मिश्रित भावना से देखा और उसके निकट आकर लेट गया, उसे अपने वक्ष से लगा लिया और उसके मुख और कन्धों को इस प्रकार स्पर्श किया जैसे उसके आरोग्य का मन्त्र सिद्ध कर रहा हो. धीरे ...धीरे...धीरे वह भी गहरी नींद में उतरता चला गया. किशन उसी प्रकार उसकी छाती से लगा हुआ सो रहा था.
और यह नींद रामधन की आख़िरी नींद साबित हुई और यह दिन उसकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन. अगले दिन के समाचार पत्रों में खबर छपी कि विषाक्त शराब पीने से पैतीस व्यक्ति काल कवलित हो गए. उन पैंतीस में से एक रामधन भी था.
--रचना काल : 09/08/1977--
(मित्रो, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह कहानी एक ऐसी दुर्घटना की पृष्ठभूमि में लिखी गई है जो जुलाई या अगस्त 1977 में हमारी राजधानी दिल्ली में घटी थी जिसमे ग़ैर कानूनी तौर पर शराब बनाने और बेचने वालों के हाथों लगभग 35 निर्दोष व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ा था)
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Last edited by rajnish manga; 22-02-2013 at 04:50 PM.
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