Re: मोती और माणिक्य
3. रहीम कृष्ण के बड़े भक्त थे. अपनी कविताओं में उन्होंने कृष्ण के प्रति भक्ति का बहुत सुन्दर वर्णन किया है :
जिहि रहीम चित आपनो कीन्हो चतुर चकोर.
निशि वासर लागे रहें, कृष्ण चन्द्र की ओर.
4. रहीम महाराणा प्रताप की देश भक्ति और उनके स्वाभिमान की बड़ी प्रशंसा किया करते थे. एक बार इनके घर की बेगमें राजपूतों के हाथ पद गईं. राणाजी ने बड़े ही आदर के साथ उनके रहीम के पास भेज दिया. तब से तो रहीम राणा जी का और भी आदर करने लगे.इसका बदला चुकाने के लिए उन्होंने एक बार अकबर को मेवाड़ पर एक बड़ी चढ़ाई करने से रोका भी था. राना जी के विषय में इन्होने राजस्थानी बोली में बहुत से दोहे रचे, उनमे से एक नीचे दिया जा रहा है :
भ्रम रहसी, रहसी धरा, खिसजासे खुरसाण.
अमर बिंसम्भर ऊपरै, रखियो न हाचो राण.
अकबर के बाद जहांगीर के राज्य में रहीम को बहुत तकलीफें उठानी पडीं. दरबारियों ने बादशाह को इतना भड़काया कि वह उसकी जान का दुश्मन हो गया. उसने रहीम के छोटे बेटे को मरवा दिया रहीम को सभी सुविधाओं से महरूम कर दिया गया. बाद में जहांगीर को अपनी भूल का अनुभव हुआ तो उसने रहीम को आदर सहित दरबार में बुलवाया और वह एक बार फिर से शाही ठाट बाट से रहने लगे.
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