Re: कलियां और कांटे
अनजान उग्रवादी अंकल, स्वीकार करो तुम नमस्कार !
लिख रहे आंसुओ से चिट्ठी, मत करना इसका तिरस्कार !
ख़बरें पढ़ते हैं रोज आज, हत-आहत इतने प्राण हुए !
इतनी माताओ के आँचल, किस कारन से वीरान हुए !
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झर रहे नयन निर्झर जैसे, माँ को देखा छिपकर रोते !
क्यों खेल मरण का खेल रहे, क्यों बीज पाप का तुम बोते !
पापा अपने हमको प्यारे, भोली मम्मी भी प्यारी है !
प्यारे सब मित्र-पडोसी हैं, गुडिया भी अपनी प्यारी है !
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सलमा, नीलम, सोनी, पिंकी, छोटू, अप्पू, गप्पू, सोनू !
हम साथ खेलते थे मिलकर, हँसता था नन्हा सा मोनू !
कुछ दिन पहले सब साथ बैठ, खाते थे मौज मानते थे !
पापा की उंगली पकड़ साथ, बाज़ार घूमने जाते थे !
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