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Old 01-03-2013, 06:34 PM   #24
jai_bhardwaj
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Default Re: कलियां और कांटे

अनजान उग्रवादी अंकल, स्वीकार करो तुम नमस्कार !
लिख रहे आंसुओ से चिट्ठी, मत करना इसका तिरस्कार !
ख़बरें पढ़ते हैं रोज आज, हत-आहत इतने प्राण हुए !
इतनी माताओ के आँचल, किस कारन से वीरान हुए !
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झर रहे नयन निर्झर जैसे, माँ को देखा छिपकर रोते !
क्यों खेल मरण का खेल रहे, क्यों बीज पाप का तुम बोते !
पापा अपने हमको प्यारे, भोली मम्मी भी प्यारी है !
प्यारे सब मित्र-पडोसी हैं, गुडिया भी अपनी प्यारी है !
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सलमा, नीलम, सोनी, पिंकी, छोटू, अप्पू, गप्पू, सोनू !
हम साथ खेलते थे मिलकर, हँसता था नन्हा सा मोनू !
कुछ दिन पहले सब साथ बैठ, खाते थे मौज मानते थे !
पापा की उंगली पकड़ साथ, बाज़ार घूमने जाते थे !
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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