Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
उसके होते हुए वक्त का एहसास नहीं,
कितना तनहा मुझे जाते हुए कर जाता है
उसकी आँखों में बसेरा है मेरी उल्फत का,
ये अलग बात कि वो इस बात से फिर जाता है
तज्करा मुझसे वो करता है मेरा कुछ ऐसे,
जैसे बादल किसी बस्ती पे बिखर जाता है
मेरी चुपचाप तबियत को भी यूँ लगता है
रंग बे-कैफ से लम्हों में वो भर जाता है
कांप उठता है अकेले में वजूद ऐ 'अमर',
जब कभी भूले से भी लफ्ज-ए-हिजर आता है
साजिद नाज़िर 'अमर'
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