Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
मुलाकातें हमारी बे-इरादा क्यों नहीं होतीं,
मुहब्बत की गुजर कहीं कुशादा क्यों नहीं होतीं
हमारे दरमियान ये अजनबियत का धुवां क्यों है,
हमारी चाहतें हद से ज्यादा क्यों नहीं होती
मेरे जज़्बात की खुशबू उतरती क्यों नहीं तुझमे,
तेरे दिल की सभी राहें कुशादा क्यों नहीं होती
खुशी की चंद बूंदे जिस्म को गीला कर तो देती हैं,
मयस्सर रहती लेकिन ज्यादा क्यों नहीं होतीं
तेरे नज़दीक रहके भी ये दूरी का गुमां कैसा,
तेरी बाहें मेरी खातिर कुशादा क्यों नहीं होतीं
बड़े नाज़-ओ-अदा अक्सर ये दिखलाती हैं रास्तों में,
ये सोहनी लडकियां 'इरफ़ान' सादा क्यों नहीं होती
-इरफ़ान सादिक
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