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Originally Posted by dark saint alaick
वाह ... सोमवीरजी। आज आपका एक अलग और कुछ और भाने वाला कवि-रूप देखने को मिला। सच कहूं, तो आपका यह सृजन पढ़ कर हृदय आनंदित हो गया। अनुरोध है कि इसी काव्य धारा के कुछ और रत्न यदि आपके अंतर्मन से निसृत हों, तो उन्हें फोरम पर अवश्य पेश करें। धन्यवाद।
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Originally Posted by rajnish manga
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आदि से अंत तक आपने एक व्यक्ति द्वारा अर्थहीन अभियानों में अपने समय और शक्ति के दुरूपयोग की ओर इशारा किया है. जीवन की सार्थकता हमें इधर उधर भटकने से हासिल नहीं होती बल्कि अपनी मानसिक क्षमताओं के सही और पैने इस्तेमाल से हम अपने लक्ष्य को सहज ही प्राप्त कर सकते हैं. आपकी इस रचना में न सिर्फ विषय का निर्वहन बहुत संतुलित रूप से हुआ है बल्कि अभिव्यक्ति भी बहुत संवेदनशील एवं प्रभावशाली बन पड़ी है. कथ्य और शिल्प दोनों स्तरों पर यह एक प्रशंसनीय रचना है. इस सुन्दर रचना को फोरम पर शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, सोमबीर जी.
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Originally Posted by jai_bhardwaj
अद्भुद पंक्तियाँ हैं बन्धु। ढेर सारा आभार बन्धु।
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श्री संत जी ,आदरनिये रजनीश माँगा जी और जय भरद्वाज जी आप लोगो के सहयोग और साथ की वजह जो भी लिख पाया हूँ वो आपके सामने लेकर आया हूँ ,आपने अच्छा या बुरा जैसा भी लगा मुझे नि संकोच बताया है !
और मैंने उसमे सुधार करने की अपने सत्र पर पूरी कोशिश की है आगे भी करता रहूँगा ! आप सब के विचार ही मेरी सम्पति है मैं आप सब का हार्दिक रूप आभार व्यक्त करता हूँ