Re: !! गीत सुधियोँ के !!
जीने को तो जीता ही हूँ खंडित सुरभि कथाएं सुधि के आवरणों में लिपटीं अनगिन मूक व्यथाएं यदि वह पल फिर जी सकता तो कितना अच्छा होता ! समय खींचता आगे पर मन पीछे -पीछे खींचे कोई कोमल भाव प्राण -बिरवा मधु रस से सींचे यदि वह मधु रस पी सकता तो कितना अच्छा होता !यदि वह पल फिर जी सकता तो कितना अच्छा होता ! बाहर-बाहर कुछ दिखता पर भीतर -भीतर कुछ है, जो सचमुच -सचमुच लगता है वही नहीं सचमुच है , यदि सचमुच को सी सकता तो कितना अच्छा होता ! यदि वह पल फिर जी सकता तो कितना अच्छा होता
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."
click me
|