Re: कहीं आप भी तो नहीं हैं वह दुखियारा इनसान
कुछ दिनों तक यह चलता रहा. दिल के दर्द बता देने के बाद अमर का मन तो हल्का हो गया, लेकिन सुजीत को तो मानो इसी में मजा आता था. अमर ने शुरू में उसके जीवन के दुखभरे पलों के बारे में सुना, उसे सांत्वना दी, सुझाव दिया कि कैसे ये दुख कम हो सकते है.. लेकिन जब उसने देखा कि उसका यह प्रयास बेकार जा रहा है, तो वह सुजीत से दूर रहने लगा. सुजीत को यह बात पसंद नहीं आयी कि आजकल अमर उसे वक्त नहीं दे रहा. उसने उससे सीधे यह सवाल पूछ लिया
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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