Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
किसी की यदि कोई अभिलाष,
फली भी तो कितनी देर,
धूसरित मरू पर हिमकन राशि,
चमक पाती है कितनी देर!
समेटा जिन कृपणों ने स्वर्ण,
सुरक्षित रखा उस को मूँद,
लुटाया और जिन्होंने खूब,
लुटाते जैसे बादल बूँद.
(रूपांतर/ डॉ. हरिवंश राय बच्चन)
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