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Originally Posted by jai_bhardwaj
बड़े ही जतन से सजाया है मंच
कभी कभी होने लगते हैं प्रपंच
तब जी घबराता है
कुछ नहीं भाता है
बड़ी जल्दी बन जाता 98 टंच
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जय जी, नमस्कार. यह मेरा परम सौभाग्य है कि मैं फोरम पर उपलब्ध आपके काव्य कौशल का एक रोमांचित प्रत्यक्षदर्शी बन सका. राष्ट्रभाषा के प्रति आपका समर्पण एवं आपकी रचना-धर्मिता दोनों से मैं अभिभूत हूँ. आपने अपने कथनानुसार अपने लिमरिक यहाँ प्रस्तुत किये, उसके लिए पहले तो मेरी और से बधाई स्वीकार करें, और धन्यवाद भी. सभी लिमरिक श्रेष्ठ बन पड़े हैं. मेरा आपसे अनुरोध है कि इस दिशा में अपने प्रयोग जारी रखें और फोरम पर इन्हें प्रस्तुत करते रहें. यह विधा अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँच सके, हमारा यही प्रयास होना चाहिए. एक बार फिर आपको हार्दिक धन्यवाद.