Re: ज़िन्दगी ... .
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Originally Posted by jai_bhardwaj
ये जो ज़िन्दगी की किताब है
ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख्वाब है
कहीं जानलेवा अज़ाब है
कभी खो दिया, कभी पा लिया
कभी रो लिया, कभी गा लिया
कहीं रहमतों की हैं बारिशें
कहीं तिश्नगी बेहिसाब है
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कभी खो दिया, कभी पा लिया
कभी रो लिया, कभी गा लिया
कहीं रहमतों की हैं बारिशें
कहीं तिश्नगी बेहिसाब है
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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