पति को ऐसे समय में ही मालूम होता है कैसी है उसकी पत्नी
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि...
काज भृत्य कूं जानिये, बन्धु परम दुख होय।
मित्र परखियतु विपति में, विभव विनाशित जोय।।
चाणक्य ने इस दोहे में बताया है कि जब कोई सेवा से संबंधित कार्य होता है उस समय नौकर की परीक्षा होती है। ऐसा कार्य आने पर ही मालूम होता है कि नौकर कितना योग्य और कितना अयोग्य। कोई काम ठीक से कर सकता है या नहीं।