आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
ऊख वारि पय मूल, पुनि औषधहू खायके।
तथा खाय तांबूल, स्नान दान आदिक उचित।।
इस दोहे में ऐसी चीजें बताई गई हैं जो कि हम बिना नहाए भी ग्रहण कर सकते हैं। इनका सेवन करने पर किसी प्रकार का कोई धार्मिक दोष नहीं लगता है। इन चीजों को खाने के बाद भी व्यक्ति भगवान की पूजा करने का पात्र रहता है।