08-04-2013, 11:56 PM
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Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
चूरू नगर इतिहास के झरोखे से –
चूरू नगर का गढ़
![](http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=26418&stc=1&d=1365448861)
यह मशहूर है कि सन 1814 ई. में बीकानेर राज्य के अमरचंद से लड़ते लड़ते चाँदी के गोले तोपों से दागे गए थे. उस समय चूरू के शासक ठाकुर शिवजी सिंह थे. उनका लड़का अभी छोटा था. उसे किसी प्रकार वहां से निकाल कर जोधपुर की शरण में भेज दिया गया. वहा से बड़ा हो कर उसने अपनी जोड़ तोड़ की तथा बाद में चूरू गढ़ पर अधिकार करने के लिए उसने एक योजना तैयार की.
बभूत पुरी व संभुवन गुसाईं से कडवासर के कान्हसिंह व हरी सिंह मिले और उन्हें गढ़ का फाटक खोलने के लिए राजी कर लिया. 13 नवम्बर 1817 की रात में गढ़ के फाटक उनके द्वारा खोल दिए गए.
मेहता मेघराज, जो बीकानेर की ओर से सैनिक अधिकारी था, 200 सैनिकों के साथ गढ़ से बाहर निकला और 16 नवम्बर 1817 को बाजार के बीचो बीच वीरता पूर्वक लड़ता हुआ काम आया. इस प्रकार ठिकानेदारों की सहायता से उसने चूरू के गढ़ पर अधिकार कर लिया. यह 23 नवम्बर सन 1817 की बात है.
सन 1808 ई. के अक्टूबर माह में एल्फिन्स्टन (जो बाद में 1819 से 1827 तक बम्बई के गवर्नर रहे)काबुल जाते हुए कुछ दिन के लिए चुरू रुके थे. उन्होंने अपने यात्रा विवरण में लिखा है –
“यहाँ सभी मकान पक्के हैं और इन मकानों तथा उस नगर के परकोटे की चिनाई एक विशेष प्रकार के बहुत ही सफ़ेद चुने से हुयी है जिससे उसके द्वारा निर्मित सभी स्थक अत्यंत स्वच्छ दिखाई पड़ते हैं.”
वह लिखता है कि यद्यपि वह (चूरू) नंगे रेतीले टीलों पर बसा हुआ है, तथापि देखने में अत्यंत हमवार है. वह 30 अक्टूबर 1808 के दिन चूरू से बीकानेर के लिए रवाना हुआ.
अनेक वर्षों के प्रयत्नों के बाद महाराजा सूरत सिंह का चूरू पर अधिकार हो गया था, अतः उसके हाथ से निकल जाने का उसे बहुत अफ़सोस हुआ. वह व्यग्र हो उठा. चूरू को दोबारा हासिल करने का कोई उपाय न देख कर उसने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ 9 मार्च 1818 ईस्वी को एक 11 सूत्री समझौता किया. इस प्रकार चूरू की स्वतंत्रता का अपहरण करने के लिए महाराजा ने बीकानेर राज्य की स्वतंत्रता सदा के लिए अंग्रेजों के हाथ गिरवी रख दी.
इसके तहत सहायता प्राप्त करने हेतु मेहता अबीर चंद को दिल्ली भेजा गया. वहां से ब्रिगेडियर जॉन एर्नोल्ड को बीकानेर के इलाके में भेजा गया. फतेहाबाद, सिधमुख, ददरेवा, सरसला और झटिया को फतह करती अंग्रेजी फ़ौज चूरू पहुँच गई. पृथ्वी सिंह, जो कि कुछ माह पहले ही गद्दी पर बैठा था, ने एक माह तक टक्कर ली. उसने एर्नोल्ड से सुरक्षा का तसल्ली-नामा लिया और किला खाली कर के बीकानेर दरबार में उपस्थित होने के बजाय वह रामगढ़ चला गया.
Last edited by Dark Saint Alaick; 09-04-2013 at 12:22 AM.
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